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________________ चातुर्मास के बाद अदबदजी देलवाड़ा की स्पर्शना कर राजनगर-दयालशाह का किला, करेडा तीर्थ आदि की स्प ना करने की भावना थी परन्तु सेठ मंगलचंद जी सिंधी को अपने माता पिता के श्रेयार्थ जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव करने की भावना होने से देलवाड़ा जाकर विनती की। पौ. शु. 5 के मंगलवार प्रातः पूज्य श्री को उदयपुर पुनः बुलाया। पूज्य श्री के निश्रा में सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ प्रभु के देहरासर में आठ दिनों का श्री जितेन्द्र भक्ति महोत्सव हुया । धर्म प्रेमी जनता ने उत्सव को अवधि में व्याख्यान तथा पूजा इत्यादि में उत्तम लाभ उठाया। इस समय पूज्य श्री की प्रेरणा से यहां श्री सघ में ये धार्मिक कार्य हुणसागर शाखा के अनेक मुनि भगवंत के सहयोग-उपदेश-प्रेरणा से उदयपुर में अनेक धार्मिक स्थानों का निर्माण हुआ। यह बात सागर शाखा के उन मुनियों के जीवन प्रसंगों से स्पष्ट समझ में आती है। __ उसमें एक बात का उल्लेख आ गया है कि वि. सं. 1815 लगभग श्री सागर शाखा के आठवें पट्टधर पू. मुनि श्री सुज्ञान सागर जी म. श्री ने प्राचीन आगमों पुस्तकों इत्यादि का संग्रह करके श्रुत ज्ञान की भक्ति के प्रतीकरुप ज्ञान भण्डार की स्थापना की। उदयपुर श्री संघ के हाथों उस ज्ञान भण्डार को रख कर सागर शाखा के विशिष्ट
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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