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________________ पर्वाधिराज की सफल आराधना के लिए पांच कर्तव्यों में से एक "अमारीप्रर्वतन" नाम से प्रथम कर्तव्य को समझाने जगद्वगुरु पू. आ.श्री हीरसूरीश्वर जो म. के दृष्टान्त से तथा श्री शांति चन्द्रवाचक के प्रसगों से इस मंगल दिनों में संसारो हिंसा की प्रवृतियों को बंद करने कराने पर बल दिया । तर्कबद्ध तरीके से जीवों को धर्म कार्य प्रसगों में अभयदान देने के महत्वपूर्ण बात को समझाया। परिणाम स्वरुप “सांप गया घसीटन रह गयी" की बात की तरह पर्युषण पर्व के प्रारम्भ में दो चार दिन पहले प्राचीन परिपाटी के अनुसार राज्य की तरफ से घोषणा, डांडी पोटने के रूप में होती है । "दो दिन के बाद श्रावकों के पर्युषण प्रारम्म होते हैं इससे धांची धाणी बंद रखेंगे, मछली मार जाल नहीं फेंकेगे, जीवों को कोई कतल नहीं करेगा आदि परन्तु काल चक्र परिर्वतन से लोगों की भावना घिस जाने से धांची, मच्छीमार आदि इस सम्बन्ध में पूर्णरूप से पालना नहीं करते थे। अतः पूज्य श्री ने एक सामुदायिक बड़ी टीम "जीक मुक्ति" की कराई जिसमें धांची, मच्छीमार, कसाई को रुपया देकर पर्युषण पर्व के पवित्र दिनों में हिंसा न हो ऐसा व्यावहारिक उपाय निकाला।
SR No.006199
Book TitleSagar Ke Javaharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaysagar
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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