________________
माघ शु. 2 के मंगल दिन भव्य रथ यात्रा निकाल कर पागम ज्ञान का बहुत आदर बढ़ाने की दृष्टि से श्री आवश्यक सूत्र की दशवे कालिक, श्री उत्तराध्ययन, श्री नंदीसूत्र श्री अनुयोगरूप प्रारम्भ किया । प्रतिदिन प्रातः 9 से 11 तथा दोपहर 2 से 4 वाचना के समय घी का दीपक, गेहूं की ज्ञानपूजा इत्यादि विधि का पालन सम्मानपूर्वक किया जाता था।
माघ सु 5 श्री आचारांग सूत्र से ग्यारह अंग का वाचन प्रारम्भ होकर चैत्र सु 5 से साढ़े बारह दिन की "असंझायना" के कारण वाचन बंद रह कर इस अवधि में आगमिक भक्ति के निमित्त भव्य अष्टान्हिका-महोत्सव हुआ। चैत्र वि. 2 से श्री भगवती सूत्र की शुरुग्रात हुई। आषाढ़ सु 13 तक श्री भगवती सूत्र पूरा हुआ । चातुर्मास के बीच में पर्युषण के पूर्व श्री ज्ञातासूत्र, श्री उपासक दिशा, श्री अनुत्तरोपपातिक दशा, श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र का वाचन पूरा हुआ । भा. सु. 10 से आसो. सु. 5 तक श्री उववाई, श्री राय पसेणी श्री जीवाभिगम-सूत्र का वाचन हुआ। आसोज वि. 2 से ज्ञान पंचम तक श्री पन्नवणा सूत्र का वाचन हुअा। का. वि. 10 तक बाकी के उपांगों का वाचन पूरा हुआ । पश्चात पूज्य श्री को उदयपुर में स्थानकवासियों तथा आर्य समाजियों की तरफ से महातांडव उपस्थित होने