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के समाचार चोमासे में ही बारंबार श्री मूल चंद जी द्वारा प्राप्त होने से चातुर्मास उतरने पर उदयपुर जाने की आज्ञा आई । इससे छः छेदसूत्र का तो सर्वसाधारण में वाचन नही हो सके । मात्र दस पृष्ट आगम के पढ़ने शेष रहे इसके आगे कभी ओर यह रहकर का वि. 13 पूज्य श्री ने शीघ्रताशीघ्र उदयपुर की तरफ विहार बढ़ाया ।
मृगसिर वि. 5 लगभग उदयपुर पधारे। उदयपुर में संवेगी साधुत्रों के विहार का सर्वथा अभाव या । श्रीपूज्य के यतियों की बोलबाला में श्री वीतराग प्रभुजो के 36 जिनालय होने पर भी धर्म प्रेमी जनता में धर्म भावना की अत्यधिक न्यूनता थी । स्थानकवासियों की आपात-रम्य सुन्दर लगती दलालों के चक्र में चढ़कर बावक जावन के अनुरूप प्रभुदर्शन अथवा श्री वोतराग परमात्मा की अष्टप्रकारी पूजा आदि को पद्धति अत्यधिक गड़बड़ पढ़ गयी।
पूज्य श्री उदयपुर श्री संघ के श्रावक कुल की महत्ता जिन शासन की महिमा तथा "अन्नतकर्मी के भार से छूटने के लिए श्री वीतराग परमात्मा की भक्ति के अतिरिक्त कोई आधार नहीं है।" इस विषय पर जोरदार व्याख्यान देकर धार्मिक जनता में अनोखी जागृति उत्पन्न करने लगे।
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