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________________ जयादय महाकाव्य का शेलावेज्ञानिक अनुशीलन 'बही मन्ना दाम होता है जो दाता के मात्विक भावों से ओतप्रोत हो एवं जिसको दिया जावे उसकी आत्मा को भी उन्नत बनाने वाला हो तथा विश्व भर के लिए आदर्श मार्ग का सूचक हो ।' (पृष्ट-5८) ____ मानव के आचार विचार इतने उन्नत हों कि वह समता के द्वारा ममता को मिटा दे, क्षमा से क्रोध का अभाव कर दे. विनीत वृत्ति द्वारा मान का मूलोच्छेद करे, माया और लोभ पर मन-वचन-काय एवं निरीहता के द्वारा विजय प्राप्त कर ले । इस प्रकार वह कर्मजयी होकर आत्मा मे परमात्मा बन जाता है । आत्मा से परमात्मा बनना ही मानव का कर्तव्य है।" इन उदाहरणों से कवि का गद्य काव्य कौशल टपक-टपक पड़ता है । मानव धर्म ‘‘मानवधर्म'' महाकवि द्वारा रचित एक ऐसी कृति है जो जन-जन तक पहुँच कर उसके सामान्य जीवन को प्रभावित एवं प्रेरित करती है । यह समन्तभद्राचार्य द्वारा रचित रत्नकरण्ड श्रावकाचार के श्लोकों का एक अनुशीलन है । यह न तो उक्त ग्रन्थ का अनुवाद है, न टीका, अपितु उसके श्लोकों पर छोटी-छोटी टिप्पणियों का संकलन है । यह सामान्यजन के जीवनद्वार खटखटाने में पूर्ण समर्थ है । इस कृति की प्रमुख विशेषताएं हैं - सरल भाषा, छोटे-छोटे सटीक वाक्य, हृदयस्पर्शी लघु दृष्टान्त एवं अनेक प्रेरक सूक्ति मणियाँ | कुछ उद्धरण द्रष्टव्य हैं - ___ "किसी बात को बताते समय पक्षपात का चश्मा दूर होना चाहिए, ताकि हमारी जानकारी अपना ठीक काम कर सके ।" (पृष्ठ-८) ___“जो संसार अर्थात् संक्लेश को दूर करके प्राणी मात्र को सुख शान्ति की देने वाली हो, ऐसी चेष्टा का नाम ही सद्धर्म है ।'' (पृष्ठ-३) "उचित-अनुचित का विचार किये बिना, नफा-नुकसान सोचे बिना ही लोगों की देखा-देखी जो काम किया जाता है, उसे लोकमूढ़ता कहते हैं ।” (पृष्ठ-३०) ___ “मनुष्य में पापवृत्ति, खुदगर्जी, अभिमान की मात्रा का अभाव होना चाहिए फिर भले ही और कोई प्रकार की साधन सामग्री इसके पास मत हो तो भी इसे सब प्रकार से आनन्द प्राप्त होता है । किन्तु अगर एक खुदगर्जी ने इसके दिल में घर कर रखा है तो और सभी तरह की सुख सामग्री होकर भी इसे सुख नहीं पहुँचा सकती, प्रत्युत बाधक बन जाया
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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