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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
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को देने के हेतु आदेश लिखा होगा । अतः वसन्तसेना "विषं सन्दातव्यम्" के स्थान पर "विषां सन्दातव्यं” लिखकर पत्र पूर्ववत् रखकर गन्तव्य स्थान पर चली जाती है ।
विश्राम के अनन्तर सोमदत्त श्रेष्ठी के यहाँ जाकर उनके पुत्र महाबल को पत्र देता है । पत्र के आदेशानुसार वह विषा का विवाह सोमदत्त से कर देता है ।
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विषा और सोमदत्त के विवाह का समाचार सुनकर गुणपाल शीघ्र ही घर आता है । लोकाचार के कारण वह पुत्री के विवाह से हर्ष व्यक्त करता है । पर मन ही मन वह पुत्री के विधवा होने की चिन्ता न करते हुए जामाता सोमदत्त को मारने का उपाय सोचता है । वह मन्दिर में एक चाण्डाल को सोमदत्त के वध हेतु नियुक्त करता है । उसे सोमदत्त की पहचान भी बतला देता है। अब वह सोमदत्त को पूजन सामग्री देकर मन्दिर में भेजता है । सोमदत्त श्वसुर के आदेश पालन हेतु प्रस्थान करता है । मार्ग में उसे अपना साला महावल मिलता है । वह अपने बहनोई से पूजन सामग्री ले कर उन्हें घर के लिए रवाना कर देता है और स्वयं पूजन सामग्री ले कर मन्दिर पहुँचता है, जहाँ चाण्डाल के द्वारा मारा है | पुत्र के निधन एवं सोमदत्त को मारने के प्रयासों में असफल रहने पर भी गुणपाल हताश एवं निराश नहीं होता । वह सोमदत्त की हत्या के लिए अपनी पत्नी गुणश्री से चार विषमिश्रित लड्डू बनवाता है। इस बात से अनभिज्ञ विषा पिता के शीघ्र भोजन माँगने पर उन्हें वे ही दो लड्डू दे देती है । फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती है। पति को मृत देखकर सेठानी गुणश्री भी शेष दो विषमिश्रित लड्डू भक्षणकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेती है ।
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उक्त घटना जब राजा सुनते हैं तो सोमदत्त को अपने दरबार में आमंत्रित करते हैं । वे प्रभावित हो उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर देते हैं एवं उसे आधा राज्य सौंप देते हैं ।
एक दिन नगर में गोचरी हेतु पधारे मुनिराज को सोमदत्त और उसकी दोनों स्त्रियाँ आहार देती हैं । अनन्तर उनसे धर्मोपदेश श्रवणकर सोमदत्त जिनदीक्षा धारण करता है । उसकी दोनों स्त्रियाँ एवं वसन्तसेना भी आर्यिका बन जाती हैं। सभी संन्यासपूर्वक देह त्यागकर स्वर्ग में जाते हैं ।
प्रस्तुत काव्य में गद्य-पद्य में पूर्ण सन्तुलन है । सरल मुहावरेदार भाषा, लम्बे वाक्यों का अभाव, अवसरानुकूल रस, अलंकारादि का प्रयोग सहृदय को भावविभोर एवं रससिक्त कर देता है ।