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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन . इधर जब रानी को अपना रहस्य खुलने की बात ज्ञात होती है तो वह फाँसी लगाकर आत्महत्या कर लेती है । मृत्यु के बाद वह व्यंतरी देवी बनती है । पंडिता धाय राजा के भय से भाग कर पाटलिपुत्र की प्रसिद्ध वैश्या देवदत्ता की शरण में जाती है । वहाँ वह अपनी सारी कहानी सुनाकर कहती है - इस संसार में सुदर्शन ही सर्वांग सुन्दर पुरुष है, जिसे कोई भी स्त्री डिगाने में समर्थ नहीं है । यह सुनकर देवदत्ता बोली - एक बार यदि वह मेरे जाल में फंस गया तो बचकर नहीं निकल सकता ।
___ सुदर्शन मुनिराज बिहार करते हुए एक दिन गोचरी के लिए पाटलिपुत्र नगर में पधारते हैं । उनको आते देखकर पंडिता धाय देवदत्ता को संकेत कर अपना चमत्कार दिखाने के लिए प्रेरित करती है । यह सुनकर देवदत्ता अपनी दासी को भेजकर उन्हें भोजन के लिए पड़गाहती है । मुनिराज को घर के अन्दर ला कर वह सब दरवाजे बन्द कर अपने हाव-भाव दिखाती है । किन्तु उसके वचनों और चेष्टाओं का काष्ठनिर्मित मानव पुतले के समान मुनि सुदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ता । वैश्या की तीन दिन तक की गई सभी चेष्टायें निष्फल रहती हैं । तब वह अति आश्चर्य से उनकी प्रशंसा करती है । अपने अपराध की क्षमा माँगकर स्वयं के उद्धार के लिए निवेदन करती है । मुनिराज देवदत्ता के सद्भाव देखकर सदुपदेश द्वारा कल्याण का मार्ग समझाते हैं । तत्पश्चात् महामुनिराज सुदर्शन श्मसान में जाकर कायोत्सर्ग धारण कर आत्मध्यान में निमग्न हो जाते हैं ।
एक समय व्यन्तरी देवी (पूर्व जन्म की रानी अभयमती) आकाशमार्ग से विहार करती हुई जाती है । मार्ग में ध्यानस्थ सुदर्शन को देखते ही उसे अपना पूर्वभव याद आ जाता है । वह बदला लेने की भावना से उन पर सात दिन तक घोर उपसर्ग करती है परन्तु उन्हें ध्यान से विचलित नहीं कर पाती । चार घातिया कर्मों के क्षय होने से मुनिराज को केवलज्ञान प्राप्त होता है । देव आठ प्रातिहार्यों की रचना करते हैं। सभी उनकी पूजा वन्दना करने आते हैं । देवदत्ता, पंडिता धाय तथा व्यंतरी देवी भी उनकी वन्दना हेतु आती हैं । मुनिराज के उपदेश सुनकर सभी अपने योग्य व्रत आदि धारण करते हैं । सुदर्शन केवली कर्मों का क्षय कर मोक्ष जाते हैं।
इस प्रकार नौ सर्गों वाला यह महाकाव्य ब्रह्मचर्यनिष्ठा का जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत करता है । इसका नायक सुदर्शन श्रेष्ठी धीरोदात्त है । वैदर्भी रीति से प्रवहमान इस काव्य प्रवाह में सहृदयों के मानस-मीन विलासपूर्वक उन्मज्जन-निमज्जन करने लगते हैं । अनुप्रास, श्लेष, उपमा, उठोक्षा, रूपक, विरोधाभास आदि अलंकार इसे विभूषित करते हैं । महाकाव्य