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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन आचार्य पद फाल्गुन कृष्ण पंचमी, वि. सं. २०२५, शुक्रवार, ७ फरवरी सन् १९६९ को नसीराबाद, जिला अजमेर (राजस्थान) की जैन समाज ने आपको आचार्य पद से अलंकृत किया, उसी दिन मुनि श्री विवेकसागर जी ने आपसे दीक्षा ग्रहण की । ___स्व - परकल्याण करते हुए आचार्य श्री ज्ञानसागर जी लगभग ८० वर्ष के हो गये, किन्तु उनके अध्ययन-अध्यापन पर अवस्था का कोई प्रभाव न पड़ा । उनके संघ में अध्ययन-अध्यापन का कार्यक्रम वर्तमान युग के अध्यापक एवं अध्येता के लिए आश्चर्यकारक है। आचार्य श्री के संघ में अध्ययन का कार्यक्रम उदाहरणतः ग्रीष्मकाल में इस प्रकार था १- प्रातः ५.३० से. ६.३० तक अध्यात्म तरंगिणी और समयसार कलश २- प्रातः ७ से ८ बजे तक प्रमेयरलमाला । ३- प्रातः ८ से ९ तक समयसार । ४- प्रातः १०.३० से ११.३० तक अष्टसहस्री । ५- मध्याह्न १ से २ तक कातन्त्ररूपमाला व्याकरण | ६- मध्याह्न ३ से ४ तक पंचास्तिकाय । ७- सायं ४ से ५ तक पंचतन्त्र । ८- सायं ५ से ६ तक जैनेन्द्र व्याकरण ।' महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का हस्तलेख सुन्दर एवं स्पष्ट था । वे आचार्य पद पर आसीन होते हुए भी ख्याति, लाभ आदि से पूर्णरूपेण दूर रहते थे । यही कारण है कि उनके समाधिमरण के पश्चात् जयोदय महाकाव्य की स्वोपज्ञ टीका [पूर्वार्द्ध एवं उत्तरार्ध दो भागों में ] तथा मुनि मनोरंजनाशीति [ मुनि मनोरंजन शतक प्रकाशित हो सके हैं। चारित्र चक्रवर्ती पद सन् १९७२ में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का चातुर्मास नसीराबाद में हुआ । यहीं पर आचार्य श्री से २० अक्टूबर १९७२ को स्वरूपानन्दजी ने क्षुल्लक दीक्षा अंगीकार की। इस अवसर पर जैन समाज ने आपको चारित्र चक्रवर्ती पद से सम्बोधित कर अपना श्रद्धातिरेक एवं प्रगाढ़ भक्तिभाव अभिव्यक्ति किया ।२ १. जैन सिद्धान्त (मासिक) जुलाई १९७०, पृष्ठ - ३ २. डॉ. रतनचन्द जैन, आचार्य श्री ज्ञानसागरजी का जीवन वृत्तान्त, कर्तव्यपथ प्रदर्शन, पृष्ठ - ५
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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