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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन १९५९] में उनके पिता श्री चतुर्भुज जी की मृत्यु हो गयी । उस समय बड़े भाई की उम्र १२ वर्ष तथा भूरामलजी की १० वर्ष थी । पिता के आकस्मिक निधन से घर की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई । फलस्वरूप बड़े भाई छगनलाल को जीविकोपार्जन हेतु बाहर जाना पड़ा। वे गया (बिहार) पहुँचे और वहाँ एक जैन व्यवसायी के यहाँ कार्य करने लगे । आगे अध्ययन का साधन न होने से भूरामल जी भी अपने अग्रज के समीप गया चले गये और एक जैन व्यवसायी के प्रतिष्ठान में कार्य सीखने लगे।'
गया में जीवन-यापन करते हुए लगभग एक वर्ष ही. व्यतीत हुआ था कि उनका साक्षात्कार किसी समारोह में भाग लेने आये स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी (उ. प्र.) के छात्रों से हुआ । उन्हें देखकर भूरामलजी के हृदय में वाराणसी जाकर विद्याध्ययन करने की तीव्र उत्कण्ठा जागृत हुई । उन्होंने अपनी इच्छा बड़े भाई से निवेदित की पर आर्थिक प्रतिकूलता के कारण बड़े भाई ने अनुमति नहीं दी । भूरामल जी अपनी ज्ञानपिपासा का दमन करने में समर्थ न हो सके और लगभग १५ वर्ष की आयु में अध्ययनार्थ वाराणसी चले गये।
स्याद्वाद महाविद्यालय में पहुँच कर भूरामल जी ने मात्र अध्ययन को ही महत्व दिया । जहाँ आपके अन्य साथियों का लक्ष्य परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर उपाधियाँ अर्जित करना था, वहाँ आपका उद्देश्य ज्ञानार्जन करना ही था । उनका विचार था कि उपाधियाँ तो उत्तीर्णांक पाने योग्य ज्ञान से भी अर्जित की जा सकती हैं। यदि उपाधियों को ही लक्ष्य बनाया जाये तो ज्ञान गौण हो जावेगा । वे ज्ञानगाम्भीर्य का प्रमाण कदापि नहीं हो सकती। इसी धारणा के फलस्वरूप उन्होंने अनावश्यक परीक्षाएँ न देकर अहोरात्र ग्रन्थों का अध्ययन किया । स्वल्पकाल में ही शास्त्री स्तर तक के सभी ग्रन्थों का अध्ययन पूर्ण कर लिया । क्वीन्स कालेज, काशी से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। स्याद्वाद महाविद्यालय से उन्होंने संस्कृत, संस्कृत-साहित्य और जैनदर्शन की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
१. जयोदय पूर्वार्ध, ग्रन्यकर्ता का परिचय, पृष्ठ-९ २. डॉ रतनचन्द जैन, आचार्य ज्ञानसागर जी का जीवन वृतान्त, कर्तव्य-पथ-प्रदर्शन, पृष्ठ-२ ३,४(क) वही, पृष्ठ-२
(ख) संस्मरण-श्री मानसागर जी का संक्षिप्त जीवन परिचय, मुनिसंघ व्यवस्था समिति, नसीराबाद, पृष्ठ-२ ५. (क) दयोदय चम्पू, प्रस्तावना, पृष्ठ-ड
(ख) डॉ. रतनचन्द जैन, आचार्य ज्ञानसागर जी का जीवन वृतान्त, कर्तव्यपथप्रदर्शन, पृष्ठ-२