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________________ viii पुरोवाक् । _ 'जयोदय' महाकाव्य सुविख्यात दिगम्बर जैनाचार्य पूज्य ज्ञानसागर जी महाराज की अमरकृति है । इसी का अनुशीलन डॉ. कुमारी आराधना जैन ने प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में किया है । इस पर उन्हें भोपाल विश्वविद्यलय से पीएच.डी. की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है । मेरे निर्देशन में लिखा जाने वाला यह पहला शोधप्रबन्ध था । इसलिए यह मेरी योग्यता की भी कसौटी बननेवाला था । इसके अतिरिक्त यह कृति एक ऐसे यशस्वी, श्रद्धेय आचार्य की श्रीलेखनी से प्रसूत हुई थी जो मेरे परम आराध्य आचार्य परमेष्ठी पूज्य विद्यासागर जी के परमपूज्य गुरु थे । इस कारण इस पर अनुसन्धान कराने की मेरी रुचि उत्कर्ष पर पहुँच गयी थी । मैं इस कार्य की सफलता के लिए बड़े उत्साह से प्रयत्नरत था । किन्तु जब मुझे पता चला कि प्रस्तुत महाकाव्य पर माननीय डॉ. के.पी. पाण्डेय पूर्व में ही शोधकार्य कर चुके हैं, तब मैं निराश हो गया । क्योंकि जिस पारम्परिक काव्यशास्त्रीय दृष्टि से जयोदय के अनुशीलन की परिकल्पना मैंने की थी, डॉ. पाण्डेय ने भी उसी दृष्टि से उक्त महाकाव्य का विवेचनात्मक अध्ययन किया था । फलस्वरूप मेरे द्वारा कराया जानेवाला कार्य पिष्टपेषण मात्र था। संयोगवश मेरी नियुक्ति भोपाल विश्वविद्यालय में रीडर के पद पर हो गयी । वहाँ मैं प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ. हीरालाल जी शुक्ल के सम्पर्क में आया । उनके सानिध्य में शैलीविज्ञान के अध्ययन और एम०फिल० की कक्षा में उसके अध्यापन का अवसर प्राप्त हुआ । शैलीवैज्ञानिक दृष्टि से साहित्यिक कृतियों पर अनेक लघु शोधप्रबन्ध भी लिखवाये । शैलीविज्ञान साहित्यसमीक्षा का भाषाविज्ञानपरक शास्त्र है । समीक्षा के क्षेत्र में इसका प्रवेश नया-नया ही है । इसके आधार पर की गईं साहित्यसमीक्षाएँ मुझे काफी वैज्ञानिक एवं रोचक प्रतीत हुईं। इसलिए मेरे मन में विचार आया कि क्यों न जोदय महाकाव्य के अनुशीलन को शैलीवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य दिया जाय । संस्कृत साहित्य में इस प्रकार का शोधकार्य नवीन होगा । मन ने इस विचार का पूरी शक्ति से समर्थन किया और मैंने शोध प्रबन्ध के कलेवर को शैलीवैज्ञानिक आकार दे दिया । यह बहुत सफल और उपयोगी रहा। . 'जयोदय' महाकाव्य काव्यकला का उत्कृष्ट निदर्शन है । यह कृति महाकवि ज्ञानसागर जी को भारवि, माघ और श्रीहर्ष की श्रेणी में प्रतिष्ठित करती है। इसमें काव्यभाषा के सभी उपादान अर्थात् अभिव्यक्ति की लाक्षणिक, व्यंजक और विम्बात्मक पद्धतियों के सभी प्रकार उपलब्ध होते है। उदाहरणार्थ लक्षणालक एवं व्यंजनात्मक शब्दनिवेश, शब्दालंकार, अर्थालंकार, विभावादियोजना, मुहावरे, प्रतीक एवं बिम्वविधान इन समस्त शैलीय उपकरणों का जयोदय में सटीक प्रयोग हुआ है, जिससे अभिव्यक्ति हृदयस्पर्शी, भावोद्वेलक, रसात्मक एवं रोचक बन गयी है।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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