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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन तथा विविध अवस्थाओं से युक्त लोकवृत्त का अनुकरण करने वाले नाट्य की रचना की है।"जयोदय का विषय भी मानव-चरित है । राजा जयकुमार और राजकुमारी सुलोचना का प्रणय, स्वयंवरण, सुखमय दाम्पत्यजीवन, जयकुमार की वीरता, प्रना-प्रेम, धर्म-वत्सलता, वैराग्य, तपश्चरण तथा मोक्षप्राप्ति, सुलोचना का उत्कृष्टशील, धर्म-वत्सलता, वैराग्य, तथा आर्यिका दीक्षा लेकर आत्मोत्थान की माधना, यह भोग और योग से समन्वित आदर्श मानवचरित्र जयोदय का प्रमुख प्रतिपाद्य है। कवि ने पात्रों के कुशल चरित्र-चित्रण द्वारा मानव-चरित की वैयक्तिक विभिन्नताओं का मनोवैज्ञानिक पक्ष बड़ी निपुणता से उद्घाटित किया है तथा उनकी कोमल और उग्र, उदात्त एवं क्षुद्र, रमणीय एवं वीभत्स भावनाओं का कलात्मक उन्मीलन कर सहृदयों को रस-सिन्धु में अवगाहन का अवसर प्रदान किया है ।
महाकाव्य के माध्यम से मम्यक जीवनदर्शन और आदर्श जीवनपद्धति पर प्रकाश डालना कवि का मुख्य ध्येय रहा है । इसीलिये उन्होंने काव्य के लिए ऐसा पौराणिक कथानक चुना है, जिसके नायक-नायिका धर्म से अनुप्राणित हैं और जिनके जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष है । मनुष्य के अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि सम्यक जीवनदर्शन और समीचीन जीवन-पद्धति से ही संभव है । इसलिए आत्महित और लोकहित में निरत सन्तकवि इन्हीं से परिचित कराने के लिए काव्य और नाट्य को माध्यम बनाते हैं, क्योंकि काव्य और नाट्य कान्तासम्मित उपदेश के अद्वितीय साधन हैं ।
- जयोदय में जो जीवनदर्शन प्रतिविम्बित हुआ है, उसके मान्य सिद्धान्त हैं सृष्टि की अनादि-अनन्तता, आत्मा की नित्यता एवं स्वतन्त्रता, कर्मसिद्धान्त, पुनर्जन्म एवं मोक्ष। इस जीवनदर्शन से अनुप्रेरित जीवनपद्धति के विभिन्न अंगों को कवि ने मुनिराज द्वारा महाराज जयकुमार को दिये गये उपदेश के माध्यम से प्रकट किया है। वे मुख्यतः निम्नलिखित हैंपुरुषार्थ चतुष्टय, देवपूजन, स्वाध्याय, गुरुजनों का आदर, विनय और सदाचार, दान, निरामिष आहार, न्यायपूर्वक धनार्जन एवं सप्त-व्यसन त्याग । ये सभी भारतीय जीवन पद्धति के प्रमुख अंग हैं।
. इस प्रकार एक उदात्त कथानक एवं अभिव्यक्ति की हृदयस्पर्शी रमणीय शैली ने "जयोदय" महाकाव्य को काव्यत्व के भव्य सौन्दर्य से मण्डित कर दिया है । विभिन्न प्रकार की उक्तिवक्रताओं, प्रतीकों, मुहावरों, अलंकारों, बिम्बों, लोकोक्तियों एवं सूक्तियों के प्रयोग ने जयोदय की भाषा को अनुपम काव्यात्मकता प्रदान की है । तन्मय कर देने वाली रसध्वनि, कुशल चरित्रचित्रण एवं कान्तासम्मित हितोपदेश ने महाकाव्य के आत्मपक्ष को संवारा है। ये गुण जयोदय को बृहत्त्रयी की श्रेणी में प्रतिष्ठित करते हैं ।