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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
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असम्भव को भी सम्भव बनाया जा सकता है। कारण सांगड़े (साधन) के द्वारा बड़ी से बड़ी शिला को भी हिलाया-चलाया जाता है ।' सज्जन पुरुष अर्थशास्त्र का भी अध्ययन करे, जिससे वह आम लोगों में रहते हुए कुशलतापूर्वक जीवन-यापन कर सके और प्रतिष्ठा पा सकें । अन्यथा धनहीनता मरण से भी बढ़कर भयंकर दुःखदायिनी होती है ।
इसके बाद जिन भगवान् की कीर्तन कला के लिए ताल, लय, मूर्च्छना आदि संगीत के अंगों के साथ गीति के प्रकार भी संगीत शास्त्र से सीख ले। क्योंकि मधुर वाक्यता विश्व को वश में करने वाली होती है । यद्यपि मन्त्रशास्त्र कष्ट साध्य प्रतीत होता है, फिर भी उतना ही उपयोगी, शोभन कार्यकारी भी है । पुरुष यदि स्वतन्त्रचेता हो तो उसे चाहिए कि अपने कार्यों में आयी बाधाओं को दूर करने के लिए मन्त्रशास्त्र के जानकार पुरुषों के पास रहकर परिश्रमपूर्वक उसकी भी जानकारी प्राप्त करे । गृहस्थ को वास्तुशास्त्र का भी अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि उसके द्वारा अपने निवास स्थान को बाधारहित बना सके । इसके अतिरिक्त और भी जो लौकिक कला कुशलता के शास्त्र हैं, उनका भी अध्ययन करने वाला मनुष्य सब में चतुर कहलाकर अपने जीवन को सम्पन्नता से बिता सकता है । " यद्यपि ये सब शास्त्र ऋषियों की भाषा में दुःश्रुति नाम से कहे गये हैं अर्थात् न पढ़ने योग्य माने ये हैं फिर भी इन्हें गृहस्थ भी न पढ़े, ऐसा नहीं । क्योंकि अति मात्रा में भोजन करना आमरोगकारक होने से निषिद्ध कहा गया है, फिर भी जिसे भस्मकरोग हो गया हो, उसके लिए तो वह हितकर ही होता है । यद्यपि निमित्तशास्त्र आदि भी भगवान् की वाणी से निःसृत हुए हैं, फिर भी वे प्रथमानुयोगादि शास्त्रों के समान आदरणीय नहीं हैं । देखो मस्तक भी शरीर का अंग है और पैर भी, फिर भी मस्तक के समान पैरों की सदंगता नहीं होती । ७ समझदार पुरुष का याद रखना चाहिए कि भगवान् अरहन्त की वाणी में भी जानने योग्य, प्राप्त करने योग्य और छोड़ने योग्य; ऐसा तीन तरह का कथन आता है।' जो शास्त्र यहाँ लौकिक कार्यों में हितकर न हो और सज्जनों के मन को तत्त्व के मार्ग से भ्रष्ट करने वाला हो (अतः परलोक के लिए भी अनुपयोगी हो), वह दोनों लोकों को बिगाड़ने वाला कुशास्त्र है । उसे नहीं पढ़ना चाहिए। जिससे कोई लाभ नही, उसे कौन समझदार पुरुष स्वीकार करेगा ??
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१. जयोदय, २/५८
२. वही, २ / ५९
३. वही, २ / ६० ४. वही, २ / ६१
५. जयोदय, २ / ६२
६. वही, २/६३
७. वही, २ / ६४
८. वही, २ / ६५ ९. वही, २/६६