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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अनवयमति मन्त्री
अनवद्यमति भरत चक्रवर्ती के पुत्र राजकुमार अर्ककीर्ति का मन्त्री है । वह न्यायप्रिय है । जयकुमार के पराक्रम से भली भाँति परिचित है । अतः अपने स्वामी अर्ककीर्ति को जयकुमार से युद्ध न करने की सलाह देता है । वह युद्धोन्मुख अर्ककीर्ति से कहता है ....
लंजाय जायते नैषा सती दारान्तरोत्पितिः ।
जये तेऽप्यजयत्वेन त्वेनः कल्पान्तसंस्थिति ॥ ७/४३ . - युद्ध में आपकी विजय होना निश्चित नहीं है । यदि आप विजयी हो भी गये तो सुलोचना सती है, वह आपकी न हो सकेगी। उल्टे आप परस्त्रीहरण के पाप के भागीदार
होंगे।
__अनवद्यमति अर्ककीर्ति को आमन्त्रण के बिना सुलोचना के स्वयंवर में जाने से रोकता है । इस प्रकार अनवद्यमति समय-समय पर उचित मलाह देकर अपने भूपति का मार्गदर्शन करता है।
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यह अर्ककीर्ति का मन्त्री है । नाम के अनुरूप ही इसका कार्य है । यह अपने स्वामी अर्ककीर्ति को सदैव अनुचित कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करता है । आमन्त्रण न मिलने पर भी अर्ककीर्ति का सुलोचना स्वयंवर में जाना उचित ठहराता है।
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यह अर्ककीर्ति का धूर्त सेवक है, जो सदैव अपने नाम को सार्थक बनाने वाले कार्य करता है । दुर्मर्षण द्रोहकारक वचनों से अर्ककीर्ति को जयकुमार एवं अकम्पन से युद्ध करने के लिए उत्तेजित करता है । वह बात करने में चतुर है । अनुचित बात को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि साधारण व्यक्ति को उस पर सहज विश्वास हो जाता है ।
इस प्रकार कवि ने पात्रों के कुशल चरित्र-चित्रण द्वारा मानव-चरित की वैयक्तिक विभिन्नताओं का मनोवैज्ञानिक पक्ष बड़ी निपुणता से उद्घाटित किया है तथा उनकी कोमल
और उग्र, उदात्त एवं क्षुद्र, रमणीय एवं वीभत्स भावनाओं का कलात्मक उन्मीलन, कर सहृदयों को रससागर में अवगाहन का अवसर प्रदान किया है। .
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