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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अनुप्रास
, छेकानुप्रासरूप वर्णविन्यास से उत्पन्न नाद सौन्दर्य निम्न उदाहरणों में देखा जा सकता
है
कनभूमिरुपागता गता जनभूमिर्ननु जानता नता । फलितैः फलितैर्गताङ्गताऽप्युचितेन प्रभुणा सता सता ॥ १३/४२
सुन्दरि कलिङ्गलानां कलिङ्गलानां शिरःश्रिया श्रयतात् ।
पीवरपयोपरद्वयरमेण येन स्थितोदयता ॥ ६/२२ xxx
चतुराणां चतुराणामतुच्छतुष्टिं नयनयन्तु सभाम् । .. तनुतेऽनुतेजसा स्वां कलिङ्गराजाभियां सुलभाम् ॥ ६/२३ x .. . x x मनसि मनसिजमिताया वनिताया विरहदग्धहृदयायाः ।
तल्लिङ्गानि तदानीं स्फुलिङ्गानीति . निरगच्छन् ॥ १६/६५ अधोलिखित उक्ति में नियोजित वर्ण नगाड़े की ध्वनि का बिम्ब उपस्थित कर देते
"उपांशुपांसुले व्योम्नि ढकाटकारपूरिते।". ३/१११ (पूर्वार्ध) वृत्त्यनुप्रास के द्वारा निम्न पद्य में सोमरसपानजनित मत्तदशा के द्योतन की अद्भुत सामर्थ्य आ गई है । वर्गों के बहुशः आवर्तन से जिह्वा का लड़खड़ाना सूचित होता है, जो मत्तदशा का लक्षण है -
ततत्यजेदं भभभाजनन्तु दुद्भुतं ते मुमुखासवन्तु ।
बवा ददेदेहि पिपिप्रियेति मदोक्तिरेषाऽति मुदे निरेति ॥ १६/५० अधोलिखित पद्य में "न" वर्ण की आवृत्ति से हस्तिनापुर नरेश जयकुमार की सभा का सर्वथा दोषरहितत्व प्रकाशित होता है -
न वर्णलोपः प्रकृतेर्न भङ्गः कुतोऽपि न प्रत्ययवत्प्रसङ्गः ।
यत्र स्वतो वा गुणवृद्धिसिद्धिः प्राप्ता यदीपापदुरीतिकतिम् ॥ १/३१ वृत्त्यनुप्रास के द्वारा कहीं कहीं केवल श्रुतिमाधुर्य की ही सृष्टि की गई है -