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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन यहाँ " पलाश-पलाश" तथा " सुरभि सुरभि " दोनों सार्थक हैं। "लतान्त लतान्त' में प्रथम " लंतान्त" निरर्थक है क्योंकि वह यथार्थतः "मृदुल-तान्त" है । इसी प्रकार 'पराग पराग" में दूसरा पराग निरर्थक है क्योंकि वह "परागत" का अंश है । वर्णविन्यासवक्रता के प्रयोजन " १८९ " जैसा कि पूर्व में कहा गया है वर्णविन्यासवक्रता का प्रयोग नाद सौन्दर्य की सृष्टि, रसोत्कर्ष, वस्तु की प्रभावशालिता, कोमलता, कठोरता आदि की व्यंजना, शब्द और अर्थ में सामञ्जस्य के स्थापन तथा भाव-विशेष पर बलाधान के लिये किया जाता है । इसके कुछ उदाहरण हिन्दी साहित्यकार प्रेमचन्द की कृतियों से प्रस्तुत किये जा रहे हैं : प्रेमचन्द ने अनेक स्थलों पर अनुप्रास का प्रयोग ध्वनि-सौन्दर्य की सृष्टि के लिए ही किया है । यथा - " उन्हीं के सत्य और सुकीर्ति ने उसे बचाया है । ( सेवासदन, ६३) " 'कभी सरोद और सितार, कभी पिकनिक और पार्टियाँ, नित्य नये जलसे, नये प्रमोद होते रहते हैं । " ( प्रेमाश्रम, १०१ ). कुछ प्रसंगों में अनुप्रास का प्रयोग प्रसंग की अभिव्यंजकता बढ़ाने के लिए हुआ प्रतीत होता है । वहाँ व्यंजनों की आवृत्ति से जो एक ध्वनिगत वातावरण बनाता है, वह अभिव्यक्ति को पुष्ट करता है। "सेवासदन" में वैश्याओं के जिस जुलूस को देखकर सदन आश्चर्यचकित रह जाता है, उसकी मोहनी और बाँध लेने वाली शक्ति को प्रेमचन्द ने अनुप्रास के सहारे प्रभावशाली रूप में अभिव्यक्त किया है : "सौन्दर्य, सुवर्ण और सौरभ का ऐसा चमत्कार उसने कभी न देखा था । रेशम. रंग और रमणीयता का ऐसा अनुपम दृश्य, शृंगार और जगमगाहट की ऐसी अद्भुत छटा उसके लिये बिल्कुल नयी थी ।" (सेवासदन, १५० ) यहाँ "स" और "र" के अनुप्रास जुलूस की शक्ति को जैसे घनीभूत रूपं में व्यक्त कर रहे हैं । यही घनीभूत शक्ति निम्नलिखित उदाहरण में "क" के अनुप्रास से प्रकट 1 होती है " वे आँखें जिनसे प्रेम की ज्योति निकलनी चाहिये थी, कपट, कटाक्ष और कुचेष्टाओं से भरी हुई हैं ।" (सेवासदन, १५१ ) प्रभाव की बलात्मकता की निष्पत्ति के लिए "द" की आवृत्ति का सफल प्रयोग इन वाक्यों में मिलता है -
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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