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________________ १८२ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन अयमेति मन्दमन्दं कावेरीवारिपावनः पवनः ॥ यहाँ " गन्धानान्धी" में संयुक्त व्यंजनयुगल "न्ध" की एक बार सान्तर (व्यंजनव्यवधानसहित) आवृत्ति हुई है । "कावेरीवारि" में असंयुक्त व्यंजन युगल "वर" की एक बार निरन्तर (व्यंजनव्यवधानरहित) आवृत्ति हुई है । " मन्दमन्दं " में संयुक्त व्यंजन समूह "मन्द" (बहुत से व्यंजनों) की तथा "पावनः पवनः " में असंयुक्त व्यंजन समूह की एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है । ' " सरलतर - लतालासिका " यहाँ असंयुक्त व्यंजनसमूह "रलत" की एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है। “चकितचातकमेचकितवियति" " में असंयुक्त वर्ण समूह “चकित" का एक बार सान्तर आवर्तन हुआ है । "स्वस्थाः सन्तु वसन्त ते रतिपतेरग्रेसराबासराः "" यहाँ "तेर" (असंयुक्त व्यंजन युगल) की एक बार सान्तर आवृत्ति है तथा “सन्त” (संयुक्त व्यंजन समूह ) का एक बार सान्तर आवर्तन हुआ है । ‘“पायं पायं कलाचीकृतकदलदलं” " तथा "कुहकुहाराव”" में क्रमशः ‘“ग-य,” “द-ल” एवं ‘“क-ह’” इन असंयुक्त व्यंजन युगलों की एक-एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है। "भवति हरिणलक्ष्मा येन तेजोदरिद्रः"७ यहाँ " दरिद्रः " में "द-र" की एक बार निरन्तर आवृत्ति हुई है - (ङ) कहीं कहीं वर्णसमुदाय निरन्तर (व्यंजन व्यवधान रहित) आवृत्ति में स्वरों की असमानता से वर्णविन्यासवक्रता होती है, जो अपूर्व चमत्कार की सृष्टि करती है । यथा "राजीवजीवितेश्वरे"" यहाँ "जीवजीवि" में "ज-व" वर्ण युगल की आवृत्ति हुई है जिसमें प्रथम "व" में "अ" तथा द्वितीय "व" में "इ" होने से स्वरों में असमानता है। १. वक्रोक्तिजीवित २/१ : "भनैला" इत्यादि श्लोक का अंश २. वही, २/१३, पृष्ठ १८३ ३. वही, २ / १३, पृष्ठ १८२ ४. वही, २ / १३ पृष्ठ १८२ ५-६ " ताम्बूलीनद्ध" इत्यादि श्लोकं का अंश । वक्रोक्तिजीवित २/१० ७. वही, २/११/१८१, "अयि पिवति चकोरा " का अंश ८. वही, २/१५,
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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