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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन १३७ प्राप्त किया, उसी समय अन्य राजाओं के मुखों पर गाढ़ अंजन ने अपनी सत्ता जमा ली (अर्थात् वे उदास हो गये)। इस उक्ति में “अन्य राजाओं के मुखों पर गाढ़ अञ्जन ने सत्ता जमा ली" इस लाक्षणिक प्रयोग से निर्मित बिम्ब राजाओं के अत्यन्त उदास हो जाने के भाव को व्यंजित करने की अद्भुत शक्ति रखता है। लोकोक्तिजन्य बिम्ब लोकोक्ति पर आश्रित बिम्ब का सुन्दर उदाहरण निम्न उक्ति में मिलता है - पार्थिवं समनुकूलयेत्पुमान् यस्य राज्यविषये नियुक्तिमान् । शल्यवगुजति यद्विरोधिता नाम्बुधौ मकरतोऽरिता हिता ॥ २/७०।। -- मनुष्य जिस राजा के राज्य में निवास करता है उसे अपने अनुकूल बनाये रखना चाहिए । उससे विरोध करना शल्य के समान दुःखदायक होता है । समुद्र में रहकर मगर से वैर करना अच्छा नहीं है। यहाँ “नाम्बुधौ मकरतोऽरिता हिता' (समुद्र में रहकर मगर से वैर अच्छा नहीं होता) यह लोकोक्ति “जिसके आश्रय में रहते हैं उसके प्रतिकूल आचरण करना हितकारक नहीं होता" इस तथ्य को अभिव्यंजित करने वाला अत्यन्त प्रभावशाली बिम्ब है । मुहावराश्रित बिम्ब कवि ने मुहावरों द्वारा बिम्ब निर्मित कर अमूर्त भावों को हृदयंगम बनाने का सफल प्रयोग किया है : तत्त्वभृद् व्यवहतिश्च शर्मणे पूतिभेदनमिवाग्रचर्मणे । तावदूषरटके किलाफले का प्रसक्तिरुदिता निरर्गले ॥ २/५ ॥ इस सूक्ति में "ऊषरटके किलाफले का प्रसक्तिरुदिता निरर्गले" (ऊसर में बीज बोने से क्या लाभ ?) यह मुहावरा एक ऐसा बिम्ब उपस्थित करता है जिससे अपात्र को उपदेश देने या अयोग्य व्यक्ति की सेवा करने की निरर्थकता सहजतया अनुभूतिगम्य हो जाती है। वाक्याश्रित बिम्ब निम्न उक्तियों में वाक्याश्रित बिम्बों के दर्शन होते हैं - मनो ममैकस्य किलोपहारो बहुष्वथान्यस्य तथापहारः । किमातिथेयं करवाणि वाणि हृदेऽप्यहयेयमहो कृपाणी ॥ ५/९७
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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