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________________ १३४ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनशीलन श्रवणपरक बिम्ब जयोदय में श्रवणपरक बिम्बों का प्रयोग भी सीमित है । कवि ने घन, तत, सुषिर, आनद्ध, भेरी, वीणा, झाँझ, हुडुक, नगाड़े आदि वाद्य ध्वनियों का उल्लेख किया है । निम्न श्लोक पढ़ते ही “ढक्काढक्कारपूरित" शब्द के नगाड़े की ध्वनि का बिम्ब मन में साकार हो उठता है : उपांशुपांसुले व्योम्नि टकाटकारपूरिते । बलाहकबलाधानान्मयूरा मदमाययुः ॥ ३/१११॥ -- उस समय उड़ी हुई धूल से व्याप्त आकाश जब ढक्का (नगाड़े) की ढक्कार से परिपूरित हो गया तो मेघ गर्जन के भ्रम से मयूर मतवाले हो उठे । कवि ने "जगर्ज" शब्द के प्रयोग द्वारा योद्धा की गर्जना को मूर्तित करने का प्रयत्न किया है : दृढप्रहारः प्रतिपय मूर्छामिभस्य हस्ताम्बुकणा अतुळाः जगर्न कश्चित्वनुबद्धवैरः सिक्तः समुत्थाय तकैः सखैरः ॥ ८/२६॥ -- तीव्र प्रहार से मूर्छित होकर एक योद्धा पृथ्वी पर गिर गया था । हाथी की सँड़ के विपुल जलकण जब उस पर गिरे तो वह होश में आकर उठा और वैर भावना के साथ गर्जने लगा। अलंकाराधित बिम्ब..... अलंकार बिम्ब रचना के सहज और सशक्त माध्यम हैं । जयोदय में अलंकाराश्रित बिम्ब ही सर्वाधिक हैं । अलंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास और दृष्टान्त द्वारा सुन्दर बिम्बों की योजना हुई है । कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं : लवणिमाजदलस्थजलस्थितिस्तरुणिमायमुषोऽरुणिमान्वितिः। लसति जीवनमञलिजीवनमिह दधात्ववर्षि न सुधीजनः।। २५/५॥ -- युवति का सौन्दर्य कमलपत्र पर स्थित पानी की बूँद के समान है, युवावस्था सन्ध्या समय की लालिमावत् है । जीवन अंजलि में स्थित जल के समान है । अतः बुद्धिमान् मनुष्य समय को व्यर्थ नहीं खोते । _इन उपमाओं में “कमलपत्र पर स्थित पानी की बूँद,' “सन्ध्या समय की लालिमा" तथा “अञ्जलि में स्थित पानी" क्षणभंगुरता के सशक्त बिम्ब हैं ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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