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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन उनमें से विकीर्ण होती दिखाई देती हैं जो काव्य के सौन्दर्य को कई गुना अधिक कर देती हैं । "जोवन भर भादों जस गंगा लहरे देइ समाइ न अंगा।" जायसी की इस उक्ति में साधारण सा उपमान अनेक भावों का व्यंजक है । उन्मत्तता, तरलता, कान्ति, उन्नतता आदि कितनी ही बातों की व्यंजना की बाढ़ आई गंगा से ही हो जाती है । बाढ़ आने पर नदी अपनी सीमा का उल्लंघन कर देती है, यौवन भी सीमाओं के प्रति विद्रोही है और उसके सीमोल्लंघन का भी समाज पर उतना ही बुरा प्रभाव पड़ता है जितना बाढ़ग्रस्त प्रदेशों पर. गंगा का । इस प्रकार कितनी ही दृष्टियों से यह उपमान व्यंजक है।' भावोदवोपक
बिम्ब अमूर्त भावों का हृदयस्पर्शी रूपों के द्वारा साक्षात्कार कराके सहृदय के हृदय को द्रवित कर देते हैं, उसके स्थायिभावों को जगाकर भावविभोर एवं रससिक्त कर देते हैं।
श्रव्यकाव्य के अन्तर्गत रसात्मकता की अनुभूति कराने में बिम्ब सहायक होता है। यद्यपि रसानुभूति में बिम्ब शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है, परन्तु चित्रवत्ता, प्रत्यक्षीकरण आदि की आवश्यकता का साहित्याचार्यों ने अनुभव अवश्य किया है । अभिनव गुप्त ने रसानुभूति को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि यदि "सहृदय काव्य का अभ्यास किये हुए है, उसके कुछ प्राक्तन संस्कार हैं तो परिमित भावादि के उन्मीलन द्वारा काव्य के विषय का साक्षात्कार किया जा सकता है । ऐसी स्थिति में सहृदय पूर्णपर सम्बन्ध को समझकर अमुक स्थान पर अमुक के सम्बन्ध में अमुक बात कही गई है. या अमुक इसका वक्ता है अथवा अमुक दृश्य उपस्थित किया गया है, आदि प्रसंगों की कल्पना करके रसास्वादन कर सकता है।" गम्भीरतापूर्वक देखा जाये तो अभिनवगुप्त का सारा वक्तव्य काव्य का मानस साक्षात्कार करने से ही सम्बन्ध रखता है । अमूर्त का यह मानस साक्षात्कार बिम्ब का ही व्यापार है। विम्वरूप में आये भावों को ही हम कल्पना से अनुभूत एवं प्रत्यक्ष कर सकते हैं । कवि के चित्रवत् अथवा बिम्बात्मक वर्णन में ही सहृदय श्रोता या पाठक रसानुभूति कर सकता है । स्पष्ट है कि रस की अभिव्यक्ति का प्रथम व सहज साधन बिम्ब है । बिम्बहीन वर्णन प्रत्यक्षवत्ता और अनुभवगम्यता की क्षमता के अभाव के कारण ही नीरस कहे जाते हैं।'
__ "रस की अभिव्यक्ति का प्रथम साधन बिम्ब है । इसका एक बड़ा पुष्ट कारण और भी है, वह है रस की अरूपरता और अगोचरता । काव्य में भाव या रस की सत्ता आवश्यक
१. जायसी की बिम्ब योजना - पृष्ठ २७६