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योदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
प्रकट नहीं कर सकता था, क्योंकि ऐसा करने पर वह काव्य नहीं, वरन् अकाव्य हो जाता। इस कारण उसके सौन्दर्य की व्यंजना के लिए कवि कल्पना के द्वारा सुन्दर से सुन्दर रूपों को सम्मुख रखता है और उसके सौन्दर्यातिशय को प्रेषणीय बनाता है । यहाँ उदित होते हुए सौन्दर्य के समक्ष चाँद के छिप जाने के बिम्ब द्वारा पाठक पद्मावती के अपूर्व सौन्दर्य की प्रतीति कर सकता है और अन्य रानियों के फीके सौन्दर्य की प्रतीति कर सकता है । इस प्रकार बिम्ब भावों की गहनता के प्रेषक हैं । '
"विरोधात्मक वस्तुओं में भाव तीव्रतर हो जाता है । विरह से असुन्दर और मलिन पद्मावती के लिए काँच के पोत की उपमा दी गई है, जो उसके पूर्व ज्योतितरूप के समक्ष अति क्षुद्र, अति निकृष्ट स्वरूप को उपस्थित करती है और इसप्रकार क्षुद्रता व असुन्दरता को तीव्र बनाकर प्रस्तुत करती है -
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" संग ले गयऊ रतन सब जोती, कंचन क्या काँच में पोती ।" इसीप्रकार -
"उठे लहर पर्वत की नाई, होई फिरै जोजन लख ताई ।
धरती लैत सरग लेहि वाढ़ा, सकल समुन्द जानहु भा ठाड़ा ॥"
यहाँ पर्वत के समान लहरें कहने से संभवतः कवि को सन्तोष नहीं हुआ, इसी कारण वह समुद्र के खड़े हो जाने का रूप प्रस्तुत करता है । इस प्रकार भयंकरता की जो चरम सीमा कवि देना चाहता है, वह अनुभव में आ जाती है।"
कालिदास के निम्न में प्रयुक्त बिम्ब भी यक्षप्रिया की वियोगावस्था का उग्ररूप प्रत्यक्ष करते हैं -
नूनं तस्याः प्रबलरुदितोच्छूननेत्रं प्रियाया निःश्वासानामशिशिरतया भिन्नवर्णा धरोष्ठम् । हस्तन्यस्तं मुखमसकलब्यक्ति लम्बालकत्वा दिन्दोर्दैन्यं त्वदनुसरणक्लिष्टकान्तेर्विभर्त्ति ॥
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भावपरम्परा के व्यंजक
बिम्ब कभी कभी एक साथ अनेक भावों की व्यंजना करते हैं, अनेक भावरश्मियाँ
१. जायसी की बिम्बयोजना, पृ. १३७-१३८
२. वही, पृष्ठ २७० - २७१
३. जायसी की बिम्ब योजना, पृष्ठ २७२ ४. उत्तरमेघ - २१