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जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन
बिम्बवाद के पिता राम का कथन है कि - "कविता रोजमर्रा की भाषा नहीं है, बल्कि दृश्य अथवा मूर्त भाषा है जो व्यक्ति के सन्मुख अमूर्तवस्तु का मूर्तरूप प्रदर्शित करती है। काव्य में बिम्बविधान मात्र अलंकरण के लिए नहीं होता, वरन् वह कविता का प्राण है।' आलोचक लुइस का मत है कि बिम्ब ही कवि का मूल प्रतिपाद्य है। कवि ड्राइटन ने भी स्वीकार किया है कि कविता की महानता और जीवन्तता उसकी बिम्ब प्रस्तुत करने की शक्ति में निहित है।
हिन्दी के कई आलोचकों और कवियों का ध्यान इस ओर गया है । सुप्रसिद्ध आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं- "कविता में कही बात चित्र रूप में हमारे सामने आनी चाहिये । कविता वस्तुओं और व्यापारों का बिम्ब ग्रहण कराने का यत्न करती है।'
__ बिम्बात्मक भाषा के लिए "चित्रभाषा" का प्रयोग करते हुए "पल्लव" की भूमिका में सुमित्रानन्दन पन्त कहते हैं - "कविता के लिए चित्र-भाषा की आवश्यकता पड़ती है, उसके शब्द सस्वर होने चाहिए जो बोलते हों । सेव की तरह जिसके रस की मधुर लालिमा भीतर न समा सकने के कारण बाहर झलक पड़े, जो अपने भाव को अपनी ही ध्वनि में आँखों के सामने चित्रित कर सके, जो झंकार में चित्र और चित्र में झंकार हो ।
दिनकर जी भी कहते हैं - "चित्र कविता का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गुण है, प्रत्युत यह कहना चाहिए कि वह कविता का एक मात्र शाश्वत गुण है, जो उससे कभी नहीं छूटता। कविता और कुछ करे या न करे किन्तु चित्रों की रचना अवश्य करती है और जिस कविता के भीतर बनने वाले चित्र जितने ही स्वच्छ यानी विभिन्न इन्द्रियों से स्पष्ट अनुभूतियों के योग्य होते हैं, वह कविता उतनी ही सफल और सुन्दर होती है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि बिम्ब का काव्य में महत्वपूर्ण स्थान है । समस्त विद्वान् आलोचकों ने बिम्ब को काव्य का मूल तत्त्व और कवि प्रतिभा का एक मात्र परिचायक माना है।
१. स्पेक्युलेशन : टी.ई. धूम, पृ. १३५ (जायसी की विम्बयोजना, पृ. ३४ से उद्धृत) २. जायसी की विम्बयोजना, पृष्ठ ३५ से उद्धृत 3. Imagination is, in itself, the very height and life of poetry. Dryden quoted by
Lewis, Poetic Image, Page-18 ४. चिन्तामणि, भाग-२ ५. रसमीमांसा, पृष्ठ ३१० ६. पल्लव/प्रवेश, पृष्ठ-२६ ७. चक्रवाल/भूमिका, पृष्ठ ७३