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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन महाकवि ज्ञानसागर ने कृति को रसात्मक बनाने के लिए मूलकथा में अनेक परिवर्तन किये हैं । उन्होंने काव्य के अनावश्यक विस्तार को रोकने के लिए मूल कथा की कुछ घटनाओं को छोड़ दिया है । जैसे आदिपुराण में जयकुमार एवं सुलोचना के पूर्व-जन्मों का विस्तृत वर्णन है । दोनों के प्रत्येक जन्म के सम्बन्धियों से सम्बन्धित अवान्तर कथाओं का भी विस्तार से वर्णन किया गया है, जिससे पाठक इन कथाओं में इतना उलझ जाता है कि उसे मूल कथा समझने में कठिनाई होती है। परन्तु जयोदयकार ने मात्र जयकुमार एवं सुलोचना के ही पूर्वजन्मों का उल्लेख कर कथा को अनावश्यक बोझ से मुक्त कर सरस बना दिया है। ____ कवि ने पात्रों की चारित्रिक उदात्तता की रक्षा के लिए भी कुछ घटनाओं को अपने काव्य में स्थान नहीं दिया है । आदिपुराण में उल्लेख है कि जयकुमार एक शुष्क वृक्ष पर बैठे सूर्याभिमुख कौए को रोते देख अनिष्ट की आशंका से अचेत हो जाते हैं । जयोदयकार ने इस घटना का परित्याग कर दिया है । इससे काव्य में भयानक रसभास नहीं आ पाया है और धीरोदात्त नायक के स्थैर्य गुण की रक्षा हो सकी है। काव्य सृजन का महाकवि का प्रमुख ध्येय रहा है नायक के माध्यम से पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि करना । अतः कवि ने मूल कथा की उन घटनाओं एवं तथ्यों को, जो पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि में सहायक नहीं हैं, छोड़ दिया है । यथा आदिपुराण में जयकुमार के माता-पिता पितृव्य का एवं राजा अकम्पन के परिवार का विस्तृत परिचय मिलता है । पर महाकवि का प्रयोजन मात्र जयकुमार का उदय बतलाना रहा है, अतः उन्होंने काव्य में प्रसंगवश जयकुमार के पिता के नाम का उल्लेख किया है । काव्य में अकम्पन उनकी पत्नी एवं पुत्री का परिन्ग उस समय मिलता है, जब उनका दूत जयकुमार की सभा में सुलोचना के स्वयंवर का समाचार लेकर जाता है ।' कवि द्वारा कृत इस परिवर्तन से कथानक का अनावश्यक विस्तार नहीं हो पाया है और अत्यन्त सफलता पूर्वक काव्य-प्रयोजन सिद्ध हुआ - कुछ स्थलों पर कवि ने नये प्रसंग जोड़े हैं । उदाहरणार्थ आदिपुराण में शीलगुप्त मुनिराज से जयकुमार के उपदेश सुनने मात्र का उल्लेख है । परन्तु जयोदय में मुनि जयकुमार १. आदिपुराण, भाग - २, ४६/१९-३६६, ४७/१-२५० २. जयोदय, २३/४५-९७ ३. आदिपुराण, भाग - २, ४५/१३९-१४१ ४. वही, ४३/७७-८३ ५. जयोदय, ३/३०, ३७-३८ ६. आदिपुराण, भाग-२, ४३.८८-८९
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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