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________________ 341 का उल्लेख नहीं है, वहाँ आचार्य जिनप्रभ की सूचियों में चतुःशरण का स्पष्ट उल्लेख है । इसका फलितार्थ यह है कि चतुःशरण प्रकीर्णक नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र के परवर्ती किन्तु विधि मार्गप्रपासे पूर्ववर्ती है। चतुःशरण प्रकीर्णक ____ पइण्णयसुत्ताई भाग 1 को आधार बनाकर प्रस्तुत कृति में कुशलाबुबंधी चतुःशरण और चतुःशरण इन दो प्रकीर्णकों का गाथानुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। कुशलानुबन्धी चतुःशरण भी चतुःशरण प्रकीर्णक का ही अपरनाम है। दोनों ही प्रकीर्णकों की यद्यपि एक भी गाथा शब्द रूप में समान नहीं है तथापिभाव रूप में दोनों प्रकीर्णकों की विषयवस्तु प्रायः समान ही है। इनमें चार गति, चार शरणा, दुष्कृत्य की निन्दाऔर सुकृत्य की अनुमोदना का निरूपण हुआहै। कुशलानुबंधी चतुःशरण एवं चतुःशरणप्रकीर्णक में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ . । प्रस्तुत संस्करणों का मूल पाठ मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित एवं श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित “पइण्णयसुत्ताई' ग्रंथ से लिया गया है। मुनिश्री पुण्यविजयजी ने इस ग्रंथ के पाठ निर्धारण में निम्नलिखित प्रतियों का उपयोग किया है इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से “पइण्णयसुत्ताई' ग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 23-27 देख लेने की अनुशंसा करते हैं। 1. 2. 3. जे.: आचार्यश्री जिनभद्रसूरिजैन ज्ञानभंडार की ताडपत्रीय प्रति। हं.: श्रीआत्मारामजी जैन ज्ञान मंदिर, बड़ौदा में उपलब्ध प्रति। यह प्रति मुनि श्री हंसराजजी के हस्तलिखित ग्रंथसंग्रह की है। सा. आचार्य श्री सागरानन्दसूरिश्वरजीद्वारा सम्पादित एवं वर्ष 1927 में आगमोदय समिति, सूरत द्वारा प्रकाशित प्रति। ला. : लालभाई दलपतभाईभारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद में संग्रहितप्रति। सं.:संघवीपाडाजैन ज्ञानभंडार की उपलब्धताड़पत्रीय प्रति। पु. मुनिश्री पुणविजयजी के हस्तलिखित ग्रंथसंग्रह की प्रति। 5. 6.
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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