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________________ 336 भगवती आराधना और संस्तारक प्रकीर्णक में उपलब्ध होने वाली एक कथा से स्पष्ट रूप से भिन्नता है। संस्तारक प्रकीर्णक में धर्मसिंह मुनि द्वारा गृद्धपृष्ठमरण नामक संथारा ग्रहण करके हजारों तिर्यंचों द्वाराखाये जाने पर भी समाधिमरणपूर्वक शरी त्याग कर उत्तम अर्थ प्राप्त करने का कथानक है, इसके स्थान पर भगवती आराधना में धर्मघोषमुनि के नाम से जो कथानक मिलता है, उस अनुसार चंपानगरी में गंगा तीर पर मासखमण की तपस्या करते हुए तृषा (प्यास) सहन करते हुए भी समाधिमरणपूर्वक शरीर त्याग कर धर्मघोष मुनि उत्तमअर्थ को प्राप्त हुए। इस प्रकार धर्मघोष और धर्मसिंह इस नाम में आंशिक समानताहोते हुए भी कथा में भिन्नता है। ___संस्तारक प्रकीर्णक में महावीर के दो शिष्यों को मंखलिपुत्र गोशालक के द्वारा तेजोलेश्या में जलाये जाने का दृष्टांत उपलब्ध होता है। जहाँ तक इस दृष्टांत का प्रश्न है, यह दृष्टांत श्वेतांबर परंपरा मान्य पाँचवें अंगआगम भगवतीसूत्र के पंद्रहवें शतक और आगमिक व्याख्या साहित्य में विस्तारपूर्वक मिलता है। इनमें इन दोनों शिष्यों के नाम मुनि सर्वानुभूति और मुनि सुनक्षत्र बताये गये हैं 'किन्तु भगवती आराधना में यह कथा हमें उपलब्ध नहीं होती है। यदि संस्तारक के लेखन का आधार भगवती आराधना होता तो संस्तारक के ग्रंथकर्ता को इस कथा को संस्तारक में नहीं लेना चाहिए था, क्योंकि महावीर के दो शिष्यों को गोशालक द्वारा तेजोलेश्या से जलाये जाने का यह दृष्टांत श्वेताम्बर परंपरा में ही प्रचलित एवं मान्य है। दिगम्बर परंपरा तो केवलि में परिषहों का अभावमानकर इस दृष्टांत को अमान्य कर देती है। गजसुकुमाल का जो दृष्टांत संस्तारक और भगवती आराधना में उपलब्ध होता है, वह इन दोनों ग्रंथों में समान है किन्तु आगमिकधारा और मरणविभक्ति से सर्वथा भिन्न है। संस्तारक और भगवती आराधना के अनुसार गीले चमड़े की तरह सैकड़ों किलों से भू-तल पर वींध दिये जाने पर भी गजसुकुमाल समाधिमरण को प्राप्त हुए। श्वेताम्बर परंपरा में संस्तारक को छोड़कर अन्यत्र गजसुकुमाल का दृष्टांत दूसरे रूप में मिलता है। अन्तकृतदशासूत्र के अनुसार गजसुकुमाल के सिर पर उसके श्वसूर द्वारा गीली मिट्टी की पाल बाँधकर उसमें दहकते हुए अंगारे रखकर उनके सिरोभाग को जला 1. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रः सम्पा. मुनि मधुकर, प्रका. आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर, शतक 15 सूत्र-71-76
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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