SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 291 इस प्रकार जिन सहस्त्रनाम के दस शतकों में वीरस्तव के 26 में से 15 नामों की समानता प्राप्त होती है। इसके पूर्व आचार्य जिनसेन ने जिन सहस्त्र नाम से दस शतकों का एक ग्रंथ लिखा था। इसी प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति ने भी जिन सहस्त्रनाम का' 123 श्लोकों का एक ग्रंथ लिखा । श्वेताम्बर परंपरा में हेमचन्द्राचार्य ने 'श्री अर्हन्नामसहस्त्रसमुच्चयः' नाम से 123 श्लोकों का ग्रंथ लिखा, जिनमें भी महावीर के अनेक पर्यायवाची नामों एवं गुणों का संकीर्तन किया गयाहै। ___ इस प्रकार जैन आगमों एवं अन्य स्तुतिपरक ग्रंथों के तुलनात्मक विवेचन में हमने अपनी ज्ञान सीमाओं को ध्यान में रखते हुए चर्चा प्रस्तुत की। हमारी यह इच्छा अवश्य थी कि वीरत्थओ में प्रतिपादित एक-एक शब्द का जैन बौद्ध एवं वैदिक परंपरा में विस्तार खोजा जाय, परंतु इससे ग्रंथ प्रकाशन में विलम्ब होना स्वाभाविक था। हम आशा करते हैं कि स्तुतिपरक साहित्य में रुचि रखने वाले विद्वान विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन कर इस कमी को पूरा करेंगे। इसीशुभेच्छा के साथ वाराणसी 1 जनवरी 1995 सागरमल जैन सहयोग- सुभाष कोठारी
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy