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1. आचारांग सूत्र में महावीर के नाम- भगवान महावीर के संदर्भ में प्राचीनतम सूचना देने वाला ग्रंथ आचारांग सूत्र माना जाता है। यह ग्रंथ मुख्यतः साधना-प्रधान है फिर भी इसमें उनके जीवनवृत की झलक इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के 9वें उपधान श्रुत में देखने को मिलती है। इसमें भगवान के साधना काल में भिक्षु' संज्ञा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है"। इसी में इनके कुल का परिचय देते समय ज्ञातपुत्र शब्द भी प्राप्त होता है"। आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के नवें अध्ययन में इनके लिए 'माहण', 'नाणी' और 'मेहावी' शब्दों का प्रयोग किया गया है"। ये तीनों शब्द वीरस्तव में नहीं हैं।
__ श्रवण भगवान महावीर के प्रति अपने पूज्य भाव दर्शाने के कारण आचारांग में जगह-जगह पर 'भगवं', 'भगवंते', 'भगवया', शब्द प्रयोग किये गये हैं।" 'वीर' शब्द का प्रयोग आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में प्राप्त तो होता है परंतु वह अत्यंत पराक्रमी, आध्यात्मिक दृष्टि के पुरुषों के लिए प्रयुक्त हुआ है संभवतः यही आगे चलकर महावीर के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगा होगा।
इसी प्रकार 'बुद्ध' एवं 'प्रबुद्ध' शब्द भी महावीर के विशेषण के रूप में आचारांग में प्राप्त होते हैं। बाद में यह बुद्ध शब्द भगवान बुद्ध के लिये प्रयुक्त होने लगा और जैन परंपरा में इसका प्रचलन समाप्त होने लगा। _____ सारांश रूप से आचाराग में मुनि, भिक्षु, माहण, ज्ञातृ पुत्र, भगवान, वीर, तीर्थंकर, केवली, सर्वज्ञ आदि विशेषण विशेष रूप से महावीर के लिए ही प्रयुक्त हुए
11. आचारांग9/1/10 12. वही9/1/16,9/1/23 आदि। 13. (अ) समणेभगवंमहावीरे.........।आचारांग1।1।1,91215,91317
(ब) महावीर चरित मीमांसा -पं. दलसुखमालवणिया-पृ. 14 14. एसवीरेपसांसिए, जे बद्धे पडिमोयए..... आचारांग1/140 15. महावीरचरितमीमांसा-पृ. 15