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________________ 23 सिद्धशिला - अंत में सिद्धशिला पृथ्वी का वर्णन किया गया है जो सर्वार्थसिद्ध विमान के सबसे ऊँचे स्तूप के अंत से 12 योजन ऊपर है । वह 45 लाख योजन लम्बी चौड़ी है और परिधि में यह 14230249 योजन से कुछ अधिक है। इस पर सिद्धों का निवास है । वे सिद्ध वेदनारहित, ममतारहित, आसक्तिरहित, शरीररहित, अनाकार दर्शन और साकार ज्ञान वाले होते हैं। इनकी उत्कृष्ट अवगाहना 333 धनुष और जघन्य अवगाहना एक रत्नि आठ अंगुल कुछ अधिक है (गाथा 277 से 306 ) 1 अंत में अरिहन्तों की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए ऋषिपालित कहते हैं कि सभी भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव अरिहंतों की वंदना व स्तुति करने वाले ही होते हैं। विषय-वस्तु की तुलना - 'देवेन्द्रस्तव' की यह विषय वस्तु श्वे. आगम साहित्य एवं दिगम्बर तिलोयपण्णत्ति और अन्य प्रकीर्णकों में कहाँ उपलब्ध है इसका तुलनात्मक विवरण निम्नानुसार है -
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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