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________________ 282 .. (15) त्रिभुवन गुरु - लोक में सद्धर्म का विनियोजन करने के कारण त्रिभुवन गुरु कहा गया है। (गाथा 30) ... (16) सर्व - सभी प्राणियों के दुःखों के नाशक एवं हितकारी उपदेशक होने से महावीर को संपूर्ण कहा गया है। (गाथा 31) ____(17) त्रिभुवन श्रेष्ठ - बल, वीर्य, सौभाग्य, रूप, ज्ञान-विज्ञान से युक्त होने से त्रिभुवन श्रेष्ठ कहा गया है। (गाथा 32) ___(18) भगवन् - प्रतिपूर्ण रूप धर्म, कांति, प्रयत्न, यश एवं श्रद्धा वाले होने से तथा इहलौकिक एवं पारलौकिक भयों को नष्ट करने वाले होने से महावीर को भगवान् कहा गया है। (गाथा 33-34) - (19) तीर्थंकर - चतुर्विध संघ रूप तीर्थ की स्थापना करने वाले होने के कारण महावीर को तीर्थंकर नाम दिया गया है। (गाथा 35) (20) शकेन्द्रनमस्कृतः - गुणों के समूह से युक्त आपका इन्द्रों द्वारा भी कीर्तन किया जाता है इसलिएआपकोशकेन्द्र द्वारा अभिवन्दित कहा जाता है। (गाथा 36) (21) जिनेन्द्र - मनःपर्याय ज्ञानी एवं उपशांत क्षीण मोहनीय व्यक्ति जिन कहे जाते हैं और वे उनसे भी अधिक ऐश्वर्यवान हैं अतः महावीर जिनेन्द्र हैं। (गाथा 37) (22) वर्धमाण - महावीर के गर्भ में आने से राजा सिद्धार्थ के घर में वैभव, स्वर्ण, जनपद एवं कोश में भारी वृद्धि हुई, इस कारण उन्हें वर्धमानण कहा गया है। (गाथा 38) (23) हरि - हाथ में शंख, चक्र एवं धनुष चिन्ह धारण किए हुए होने से उन्हें विष्णु कहाजाता है। (गाथा 39) (24) महादेव - प्राणियों के बाह्य एवं आभ्यंतर कर्मरज के हरण करने वाले होने से, खट्वाङ्ग एवं नीलकण्ठ युक्त नहीं होने पर भी आप महादेव कहे जाते हैं। (गाथा 40) (25) ब्रह्मा - कमलासन, दानादि चार धर्म रूपी मुख होने से एवं हंस अवस्था में गमन होने से आपब्रह्मा कहे गये हैं। (गाथा 41) (26) त्रिकालविज्ञ- जीवादि नव तत्व जानने वाले एवं श्रेष्ठ केवल ज्ञान के धारक होने से आपको त्रिकालविज्ञ कहा जाता है। (गाथा 42)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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