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विजेता, अत्यंत शुभ एवं पुण्य परिणामों से युक्त होने के कारण देव कहा गया है । ( गाथा 1.3)
(5) जिन - रागादि शत्रु से रहित तथा वचन समाधि एवं संसार के उत्कृष्ट गुणों से युक्त होने से उन्हें जिन कहा गया है। (गाथा 14 )
( 6 ) वीर - दृष्ट अष्ट कर्मों से रहित, भोगों से विमुख, तप से शोभित एवं साध्य की ओर अग्रसर होने के कारण महावीर कहा गया है । (गाथा 15 -16)
(7) परमकारुणिक - दुःखों से पीड़ित प्राणियों को संसार से मुक्त कराने में लगे हुए, शत्रु एवं मित्र सभी पर परम करुणावान होने से वे परम कारुणिक हैं। (गाथा 17)
( 8 ) सर्वज्ञ - अपने निर्मल ज्ञान से भूत, भविष्य एवं वर्तमान को जानने वाले हैं, अतः आप सर्वज्ञ हैं । (गाथा 18 )
( 9 ) सर्वदर्शी - सबके रूपों एवं क्रियाकलापों को एक साथ अवलोकन करते हैं, अतः वे सर्वदर्शी कहलाते हैं। (गाथा 19)
( 10 ) पारग - समस्त प्राणियों के कर्म भवों को तिराने में समर्थ एवं मार्ग प्रशस्त करने वाले होने से उन्हें पराग कहा गया है। (गाथा 20 )
( 11 ) त्रिकालज्ञ - संसार के होने वाले भूत, भविष्य एवं वर्तमान को हाथ में रख हुए आंवले की तरह देखने में समर्थ होने से महावीर को त्रिकालज्ञ कहा गया है। ( गाथा 21 )
( 12 ) नाथ भव-भवान्तर से संसार में पड़े हुए अनाथों के लिए मंगल उपदेश प्रदाता होने से आप नाथ हैं । (गाथा 22 )
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( 13 ) वीतराग - विषयों में अनुरक्त भावों को रोग एवं विपरीत भावों को द्वेष कहा जाता है । ब्रह्मा, विष्णु, महादेव आदि के अहंकार को गलित करने पर भी अहंकार से रहित तथा शरीर में अनेक देवों का निवास स्थान होने पर भी विकार रहित होने के कारण आपको वीतराग कहा गया है (गाथा 23-27)
( 14 ) केवली - सर्व द्रव्यों की सर्व पर्यायों को तीनों कालों में एक साथ जानने से, अप्रतिहत शक्ति के धारणहार श्रेष्ठ साधु व्रत से युक्त होने से केवली कहा गया है । (गाथा 28-29)