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___251 भारतीय फलित-ज्योतिष की परंपरा से विस्तृत तुलना की जाय, किन्तु ऐसा करने पर ग्रंथ के प्रकाशन में पर्याप्त विलंब होने की संभावना थी। हम आशा करते है कि फलित ज्योतिष में रुचि रखने वाले जैन या जैनेत्तर विद्वान् भविष्य में दोनों ही परंपराओं का विस्तृत तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत कर इस कमी को पूरा करेंगे। अतः हम इस तुलनात्मक विवेचन को यहीं पर विराम देते हैं। वाराणसी
सागरमल जैन 19 मई 1994
सहयोग-सुभाष कोठारी