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की अपेक्षा अधिक विकसित एवं विस्तृत प्रतीत होता है । अतः विषय के विकास की दृष्टि से हम यह भी कल्पना कर सकते हैं कि जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति गणिविद्या में परवर्ती हो । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की अपेक्षा गणिविद्या की प्राचीनता के पक्ष में एक प्रमाण यह भी जाता है कि गणिविद्या में मुहूर्तों के जो नाम दिये हैं वे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की अपेक्षा अथर्वज्योतिष के नामों से अधिक समानता रखते है। वैदिक परंपरा में तीस मुहूर्तों का संकेत ऋग्वेद एवं अथर्व वेद में पाया जाता है। तैतरिय ब्राह्मण में इन तीस मुहूर्तों के नाम भी दिये गये हैं किन्तु ये नाम गणिविद्या एवं अथर्वज्योतिष से भिन्न हैं ।
बौद्ध परंपरा के दिव्यावदान में भी तीस मुहूर्तों के नामों का उल्लेख हुआ है परंतु ये नाम भी गणिविद्या से भिन्न हैं। गणिविद्या के मुहूर्तों के नामों की अथर्वज्योतिष, बृहदसंहिता की टीका एवं वायुपुराण से निकटता यह सूचित करती है कि गणिविद्या में ये नाम वैदिक परंपरा से ही ग्रहीत हुए हैं। गणिविद्या के मुहूर्तों में नामों की वैदिक परंपरा से निकटता और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से आंशिक भिन्नता इस तथ्य की भी सूचक है कि गणिविद्या का रचनाकार जैन एवं वैदिक दोनों ही ज्योतिष परंपराओं का ज्ञाता रहा हैं । फिर भी फलित ज्योतिष के शुभाशुभ संबंधी जो विचार गणिविद्या में आए हैं, वे वैदिक परंपरा के निकट हैं। गणिविद्याकार ने जैन परंपरा की मात्रनिवृत्ति मूलक साधना की दृष्टि से ही इसका उपयोग किया है।
इस सबसे यह प्रमाणित होता है कि चाहे गणिविद्याकार ने लौकिक फलितज्योतिष से अवधारणों को ग्रहण किया हो, किन्तु उसने जैन परंपरा की निवृत्तिमार्गी मूलधारा को खण्डित किया हो, किन्तु उसने जैन परंपरा की निवृत्तिमार्गी मूलधारा को खण्डित नहीं होने दिया और अपने फलित ज्योतिष को मात्र संयम - साधना के अवसरों तक ही सीमित रखा है, जबकि हम यह देखते हैं कि छठी, सातवीं शताब्दी के पश्चात् जैन परंपरा के फलित ज्योतिष संबंधी ग्रंथों में लौकिक कार्यों का भी
विचार कर लिया गया है। 6-7वीं शताब्दी से जैन धर्माचार्यों में लौकिक कार्यों हेतु मुहूर्त आदि देखना तथा तान्त्रिक प्रवृत्तियाँ प्रकट हो गयी थी, जिनका उल्लेख कुन्दकुन्द और हरिभद्र दोनों ने किया है।
इस तुलनात्मक विवेचन में हमने अपनी ज्ञान सीमाओं को ध्यान में रखते हुए ही चर्चा की है क्योंकि हम ज्योतिषशास्त्र के अधिकृत विद्वान् होने का दावा नहीं करते हैं। यद्यपि हमारी यह इच्छा अवश्य थी कि गणिविद्या में प्रतिपादित विषयवस्तु की