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1.
2.
3.
तृतीया चतुर्थी
पंचमी
षष्ठी
सप्तमी
अष्टमी
नवमी
दशमी
4.
एकादशी.
द्वादशी
त्रयोदशी
चतुर्दशी
पंचदशी
= जया
= तुच्छा/रिक्ता - पूर्णा - पञ्चमी
=
= नन्दा
= भद्रा
=जया
= तुच्छा
= पूर्णा- दशमी
= नन्दा
= भद्रा
= जया
= तुच्छा
पूर्णा - पञ्चदशी
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व्रततिथिनिर्णय नामक ज्योतिष विषयक ग्रंथ में कहा गया है कि प्रतिपदा, सिद्धि देने वाली, द्वितीया कार्य साधने वाली, तृतीया आरोग्य देने वाली, चतुर्थी हानिकारक, पंचमी शुभप्रद, षष्ठी अशुभ, सप्तमी शुभ, अष्टमी व्याधिनाशक, नवमी मृत्युदायक, दशमी द्रव्यप्रद, एकादशी शुभ, द्वादशी और त्रयोदशी कल्याणप्रद, चतुर्दशी उग्र, पूर्णिमा पुष्टिप्रद एवं अमावस्या अशुभ है। '
व्यवहार के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथियाँ सभी कार्यों के लिए प्रशस्त बतलायी गई है। 'यहीं पर बतलाया गया है कि दान, अध्ययन, शांति - पौष्टिक कार्य आदि के लिए सूर्योदय काल की तिथि उत्तम मानी जाती है । ' प्रकारान्तर से तिथियों की नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता एवं पूर्णा आदि पाँच संज्ञाएँ भी बतलायी गई है। इसके अनुसार प्रतिप्रदा, षष्ठी और एका
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व्रततिथिनिर्णय- भारतीय ज्ञानपीठ, पृष्ठ 72 | व्रततिथि निर्णय - भारतीय ज्ञानपीठ, पृ. 72
यां तिथिं समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः ।
सा तिथि : सकला ज्ञेया दानाध्ययनकर्मसु ॥ ज्योतिष्चन्द्रार्क पृ. 5 11
नंदा, भद्रा, जया, रिक्त पूर्णा चेति त्रिरन्विता ।
मध्योत्तमा शुक्ला कृष्णा तु व्यत्ययात्तिथिः ॥ आरम्भसिद्धि पृ. 4 ॥