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________________ विषयवस्तु की तुलना गणिविद्या प्रकीर्णक में निर्दिष्ट तिथि, नक्षत्र, करण मुहूर्त आदि का वर्णन जैन आगमों, व्याख्या ग्रंथों एवं अन्य ज्योतिष विषयक ग्रंथों में कहाँ-कहाँ किस-किस रूप प्राप्त होता है उसका विवरण निम्न प्रकार है - (1) पाडिवए पंडिवत्ती, नत्थि, विवत्ती भांति बीयाए । तइयाए अत्थसिद्धी, विजयग्गा पंचमी भणिया ॥ जा एस सत्तमी साउ बहुगुणा, इत्थ संसओ नत्थि । दसमीइ पत्थियाणं भवंति निक्कटया पंथा ॥ आरोग्गमविग्धं खेमियं च एक्कारसिं वियाणाहि । जेवि य हुति अमित्ता ते तेरसिपट्ठिओ जिणइ ॥ चाउद्दसि पन्नरसि वज्जेज्जा अट्ठमिं च नवमिं च। छट्टिच चउत्थिं बारसिं च दोन्हं पि पक्खाणं ॥ (2) (3) (4) चाउद्दसि पन्नरसिं वज्जेज्जा अट्ठमिं च नवमिं च । छट्ठे च चउत्थिं बारसिं च दोन्हं पि पक्खाणं ॥ नंदा भद्दा विजया तुच्छा पुन्ना य पंचमी हो । मासेण य छव्वारे एक्कििवकाऽऽवत्तए नियए ॥ 226 संझागयं रविगयं विड्डेरं सग्गहं विलंबि च । राहुहयं गहभिन्नं च वज्जए सत्त नक्खत्ते ॥ (गणिविद्या, गाथा 4-7 ) ( गणिविद्या, गाथा 7 ) (गणिविद्या, गाथा 9 ) (गणिविद्या, गाथा 15)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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