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206 द्वीपसागर प्रज्ञप्ति की विषयवस्तु का आगम एवं आगम तुल्य मान्य अन्य ग्रन्थों के साथ किए गए इस तुलनात्मक विवेचन से स्पष्ट होता है कि मानुषोत्तर पर्वत का उल्लेख स्थानांगसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, तिलोयपण्णत्ति, हरिवंशपुराण एवं लोकविभाग आदि ग्रंथों में हुआ है। मानुषोत्तर पर्वत की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई तथा उसकी जमीन में गहराई आदि के विवेचन को लेकर इन ग्रन्थों में कोई भिन्नता दृष्टिगोचर नहीं होती है, किन्तु मानुषोत्तर पर्वत के ऊपर स्थित शिखरों की संख्या इन ग्रंथों में भिन्नभिन्न बताई गई है। ____ प्रस्तुत ग्रंथ में मानुषोत्तर पर्वत के ऊपर सोलह शिखर होना माना गया है (5)। किन्तु तिलोयपण्णत्ति, लोकविभाग तथा हरिवंश पुराण में ऐसे शिखरों की संख्या भिन्न-भिन्न बतलाई गई है। तिलोयपण्णत्ति में इन शिखरों की संख्या बाईस तथा लोकविभाग व हरिवंशपुराण में इनकी संख्या अठारह मानी गई है। पूर्वादि चारों दिशाओं में अनुक्रम में चार-चार शिखर होना सभी ग्रंथों में समान रुप से स्वीकार किया गया है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में यद्यपि सोलह शिखरों का उल्लेख हुआ है, किन्तु नाम केवल बारह शिखरों के ही बतलाए गए हैं (6-7)। शेष चार शिखरों के नामों का उक्त ग्रंथ में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है। तिलोयपण्णत्ति में जो बाईस शिखरों का उल्लेख हुआ है उस अनुसार चारों दिशाओं में तीन-तीन, दो अग्निदिशा में, दो ईशान दिशा में, एक वायव्य दिशा में तथा एक शिखर नेतृत्व दिशा में है। शेष चार शिखरों के विषय में कहा है कि ये शिखर चारों दिशाओं में बतलाए गए शिखरों की अग्रभूमियों में एक-एक हैं। लोकविभाग तथा हरिवंशपुराण में इन शिखरों की संख्या यद्यपि अठारह मानी गई हैं किन्तु ये शिखर कहाँ स्थित है, इस विषयक दोनों ग्रंथों में भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। लोकविभाग के अनुसार चारों दिशाओं तथा ईशान और आग्नेय विदिशाओं में तीन-तीन शिखर स्थित हैं। हरिवंश पुराण के अनुसार चारों दिशाओं में तीन-तीन, ईशान और आग्नेय विदिशाओं में दो-दो तथा नेतृत्व और वायव्य विदिशाओं में एकएक शिखर स्थित है।
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति में चारों दिशाओं में तीन-तीन शिखर तथा शेष चार शिखर विदिशाओं में स्थित माने हैं, किन्तु यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कौनसी विदिशा में कितने शिखर हैं। संभव है द्वीपसागरप्रज्ञप्ति के अनुसार प्रत्येक विदिशा में एक-एक शिखर होना चाहिए। हमें यह संभावना सत्य के इसलिए करीब लगती है क्योंकि स्थानांगसूत्र में भी चारों विदिशाओं में चार शिखरों का उल्लेख हुआ है।