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मध्यभाग और शिखर तल की परिधि और विस्तार का परिमाण भी बतलाया गया है। (76-83)। इन शिखरों पर पल्योपम काय-स्थिति वाले सोलह नागकुमार देव कहे गए हैं। (84-86 ) ।
कुण्डल पर्वत के भीतर उत्तर दिशा में ईशान लोकपालों की तथा दक्षिण दिशा शक्र लोकपालों की तथा दक्षिण दिशा में शक्र लोकपालों की सोलह-सोलह राजधानियाँ कही गई हैं। कुण्डल पर्वत के मध्य भाग में रतिकर पर्वत के समान परिमाण वाला वैश्रमणप्रभपर्वत स्थित माना है। उस पर्वत की चारों दिशाओं में जम्बू द्वीप के समान लम्बाई-चौड़ाई वाली चार राजधानियाँ है । इसी प्रकार वरुणप्रभ पर्वत, सोमप्रभ पर्वत तथा यमवृत्तिप्रभ पर्वत की चारों दिशाओं में भी चार-चार राजधानियाँ मानी गई है (87-97)।
कुण्डल पर्वत की भीतरी राजधानियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि दक्षिण दिशा में शक्र देवराज की आठ अग्रमहिषियाँ और उनके नाम वाली आठ राजधानियाँ तथा उत्तर दिशा में ईशान देवराज की आठ अग्रमहिषियाँ और उन्हीं के नाम वाली आठ राजधानियाँ हैं ( 98-101)।
कुण्डल पर्वत के बाहर तैंतीस रमणीय रतिकर पर्वत माने गये हैं । इन पर्वतों को शक्र देवराज के जो तैंतीस देव हैं, उनके उत्पाद पर्वत बताया गया है। आगे की गाथाओं में शक्र देवराज और ईशान देवराज की अग्रमहिषियों के नाम वाली आठ-आठ राजधानियों का उल्लेख हुआ है ( 102 109 ) ।
ग्रंथ में कुण्डल समुद्र और रुचक द्वीप के विस्तार परिमाण की संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् रुचक द्वीप के मध्य में स्थित रुचक पर्वत की ऊँचाई, जमीन में गहराई, अधोभाग, मध्यभाग तथा शिखर - तल का उसका विस्तार परिमाण आदि बतलाया गया है ( 110-116) 1
रुचक पर्वत के शिखर - तल पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर - चारों दिशाओं में नानारत्नों से विचित्र प्रकाश करने वाले आठ-आठ शिखर माने गये हैं (117126) । इन शिखरों पर पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से चारों दिशाओं में एक पल्योपम काय-स्थिति वाली आठ-आठ दिशाकुमारियाँ कही गई हैं (127-135) । रुचक पर्वत पर पूर्वादि दिशाओं के अनुक्रम से द्वीपाधिपति देवों के चार आवास बतलाये गये हैं । पुनः यह कहा गया है कि इन्हीं नाम वाले आवास दिशाकुमारियों के भी हैं (136