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________________ 143 4. द्वीपसागरपण्णत्ति पइण्णयं विधि मार्गप्रपा में उल्लिखित प्रकीर्णकों के नामों में 'द्वीपसागर प्रज्ञप्ति' और ‘संग्रहणी' को भिन्न-भिन्न प्रकीर्णक बतलाया गया है जबकि द्वीपसागर प्रज्ञप्ति का नामोल्लेख द्वीपसागर प्रज्ञप्ति संग्रहणी गाथा (दीव-सागरपण्णत्ति संगहणी गाहाओ) रूप में मिलता है। हमारी दृष्टि से विधि मार्गप्रपा में सम्पादक की असावधानी से यह गलती हुई है। वस्तुतः ‘द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और संग्रहणी' दोभिन्न प्रकीर्णकनहीं होकर एक ही प्रकीर्णक है। विधि मार्गप्रपा में यह भी बतलाया गया है कि द्वीपसागर प्रज्ञप्ति का अध्ययन तीन कालों में तीन आयम्बिलों के द्वारा होता है। पुनः इसी ग्रंथ में आगे चार कालिक प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है, जिसमें द्वीपसागर प्रज्ञप्ति की समाहित है। टिप्पणी में इन चारों प्रज्ञप्तियों के नामों का उल्लेख है। यद्यपि आगमों की श्रृंखला में प्रकीर्णकों का स्थान द्वितीयक है, किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और विषयवस्तु की दृष्टि से विचार करें तो प्रकीर्णक, कुछ आगमों की अपेक्षाभी महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित आदि ऐसे प्रकीर्णक हैं, जो उत्तराध्ययन और दशवैकालिक जैसे प्राचीनस्तर केआगमों की अपेक्षाभी प्राचीन हैं।' ग्रंथ में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियों का परिचय मुनिश्रीपुण्यविजयजीनेइसग्रंथकेपाठनिर्धारण में निम्नप्रतियों का प्रयोग कियाहै1. प्र. : प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी महाराज की हस्तलिखित प्रति। 2. मु.: मुनिश्रीचंदनसागरजी द्वारा संपादित एवं चंदनसागर ज्ञानभंडार, वेजलपुर से प्रकाशित प्रति। 3. हं: मुनि श्री हंसविजयजी महाराज की हस्तलिखित प्रति। हमने क्रमांक 1 से 3 की इन पाण्डुलिपियों के पाठ भेद मुनि पुण्यविजय द्वारा संपादित पइण्णयसुत्ताई नामक ग्रंथ के लिए हैं । इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से पइण्णय-सुत्ताइग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 23-28 देख लेने की अनुशंसा करते हैं। 1. 2. दीवसागरपण्णत्ती तिहिं कालेहिं तिहिं अंबिलेहिं जाइ। विधिमार्गप्रथा, पृष्ठ 61, टिप्पणी 2 ऋषिभाषित आदि की प्रचीनता के संबंध में देखेंडॉ. सागरमल जैन-ऋषिभाषित एक अध्ययन (प्राकृत भारतीसंस्थान, जयपुर) 3.
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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