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________________ 114 मरणविभक्ति के अतिरिक्त महाप्रत्याख्यान की गाथाएँ आगम साहित्य, प्रकीर्णक साहित्य, आगमिक व्याख्या साहित्य एवं दिगम्बर परंपरा में आगम रूप में मान्य ग्रंथों में कहाँ एवं किस रूप में उपलब्ध हैं, इसका तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है प्रथम हमने महाप्रत्याख्यान की गाथाएँ दी है। फिर वे गाथाएं अन्यत्र दिगम्बर एवं श्वेताम्बर साहित्य में कहाँ मिलती है, इसका निर्देश किया है। (1) एस करेमिपणामं तित्थयराणंअणुत्तरगईणं। सव्वेसिंच जिणाणं सिद्धाणंसंजयाणंच॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा 1) (2) सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओनमो। _. सद्दहे जिणपन्नत्तं पच्चक्खामियपावगं॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा 2) (3) जंकिंचि विदुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं। सामाइयंचतिविहं करेमिसव्वं निरागारं॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा 3) (4) बाहिरऽब्भंतरं उवहिं सरीरादि सभोयणं। मणसावय कारणंसव्वं तिविहेणवोसिरे॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा4) (5) रागंबंधंपओसंच हरिसंदीणभावयं। उस्सुगत्तं भयं सोगंरइमरइंच वोसिरे॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा 5) (6) रोसेण पडिनिवेसेणअकयण्णुयया तहेव सढयाए। जो मे किंचि विभणिओतमहं तिविहेणखामेमि॥ (महाप्रत्याख्यान, गाथा 6)
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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