SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 61 मूल षट्खण्डागम की श्वेताम्बर आगम साहित्य से किस प्रकार निकटता है, उसे निम्न तुलनात्मक विवरणों से सम्यक् रूप से जाना जा सकता हैप्रज्ञापना और षट्खण्डागम प्रज्ञापना सूत्र समयं वक्कंताणं समयं तेसिं सरीरनिव्वत्ती । समयं आणुग्गहणं समयं ऊसास - नीसासे ॥ 99 ॥ षट्खण्डागम · समगं वक्कंताणं समगं तेसिं सरीरणिप्पत्ती । समगं च अणुग्गहणं समगं उस्सासणिस्सासो | सूत्र 124 प्रज्ञापना सूत्र एक्कस्स उ जं गहणं बहूण साहारणाण तं चेव । जं बहुयाणं गहणं समासओ तं पि एगस्स ।। 100। षट्खण्डागम एयरस अणुग्गहणं बहूण साहारणाणमेयस्स । एयस्स जं बहूणं समासदो तं पि होदि यस्स ॥ - सूत्र - 123 प्रज्ञापना सूत्र साहारणमाहारो साहारणमाणुपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं एयं ॥ 101॥ षट्खण्डागम साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणिदं । (सूत्र 122) स्थानांग स्थानांग और षट्खण्डागम मणसा वयसा काएण वावि जुत्तस्स विरियपरिणामो । जीवस्स अप्पणिज्जो स जोगसन्नो जिणक्खाओ ॥ - स्थानांग, स्थान 3, पृ. 101
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy