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कुन्दकुन्द उमास्वाति (गृध्रपिच्छ) बलाकपिच्छ
समन्तभद्र
शिवकोटि
देवनदी
भट्टाकलंक
जिनसेन
पुष्पदन्त
गुणभद्र
अर्हद्बल
भूतबलि
नेमिचन्द्र
माघनन्दी
एक ओर दिगम्बर परंपरा यह मानती है कि षट्खण्डागम पर कुन्दकुन्द परिकर्म नामक प्राकृत व्याख्या' लिखी थी, किन्तु दूसरी ओर उसी षट्खण्डागम के रचियता को कुन्दकुन्द की शिष्य परंपरा में दसवें क्रम पर स्थान देना कितना विरोधाभासपूर्ण है। यदि हम नंदीसंघ पट्टावली को प्रमाण मानते हैं, तो पुष्पदन्त और भूतबलि का काल ईसा की तीसरी या चौथी शताब्दी के लगभग निश्चित होता है, किन्तु इस अभिलेख के अनुसार तो पुष्पदन्त और भूतबलि न केवल कुन्दकुन्द के पश्चात्, अपितु उमास्वाति, समन्तभद्र, पूज्यपाद, देवनन्दि, भट्ट अकलंक, जिनसेन गुणभद्र आदि के भी पश्चात् हुए हैं। भट्ट अकलंक का काल दिगम्बर विद्वानों ने सातवीं शताब्दी के लगभग माना है, अतः उक्त अभिलेख के अनुसार पुष्पदन्त और भूतबलि 8वीं शती के पूर्व के सिद्ध नहीं होते हैं । इन सब विसंगतियों के कारण दिगम्बर परंपरा में उपलब्ध पट्टावलियाँ प्राचीन आचार्यों के संबंध में विश्वसनीय नहीं रह जातीं, जबकि कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियों की प्रामाणिकता मथुरा के अभिलेखीय साक्ष्यों से सिद्ध हो चुकी है। जिस नंदीसंघ की पट्टावली की प्रामाणिकता को हमारे विद्वानों ने बलपूर्वक स्थापित करने का प्रयत्न किया है ।' उसमें गौतम से लेकर भूतबलि तक 33 आचार्यों की सूची दी गई है, किन्तु इनमें कहीं भी कुन्दकुन्द का