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उत्तर भारत के वस्त्र-पात्र संबंधी विवाद के जनक थे, से करते हैं, तो समस्या का समाधान मिलने में सुविधा होती है। आर्य शिव वीर निर्वाण सं. 609 अर्थात् विक्रम की तीसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उपस्थित थे । इस आधार पर उमास्वाति तीसरी शती के उत्तरार्द्ध और चौथी शती के पूर्वार्द्ध में हुए होंगे, ऐसा माना जा सकता है । यह भी संभव है कि वे इस परंपरा भेद में कौडिण्य और कोट्टवीर के साथ संघ से अलग न होकर मूलधारा से जुड़े रहे हों, फलतः उनकी विचारधारा में यापनीय और श्वेताम्बर - दोनों ही परंपरा की मान्यताओं की उपस्थिति देखी जाती है । वस्त्र - पात्र को लेकर वे श्वेताम्बरों और अन्य मान्यताओं के संदर्भ में यापनीयों के निकट रहे हैं।
इन समस्त चर्चाओं से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उमास्वाति का का विक्रम संवत् की तीसरी और चौथी शताब्दी के मध्य का है और इस काल तक वस्त्रपात्र संबंधी विवादों के बावजूद भी श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीयों का अलगअलग साम्प्रदायिक अस्तित्व नहीं बन पाया था । स्पष्ट सम्प्रदाय भेद, सैद्धांतिक मान्यताओं का निर्धारण और श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय जैसे नामकरण पाँचवीं शताब्दी में या उसके बाद ही अस्तित्व में आये हैं । उमास्वाति निश्चित ही सम्प्रदाय भेद और साम्प्रदायिक मान्यताओं के निर्धारण के पूर्व के आचार्य हैं। वे उस संक्रमण काल में हुए हैं, जब श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय सम्प्रदाय और उनकी साम्प्रदायिक मान्यताएँ स्थिर हो रही थीं।
उमास्वाति और उनकी परंपरा : ( ई. सन् तीसरी शती)
उमास्वाति और उनका तत्त्वार्थसूत्र जैन धर्म की श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय परंपराओं में से मूलतः किससे संबंधित है, यह प्रश्न विद्वानों के मस्तिष्क को झकझोरता रहा है। जहां श्वेताम्बर परंपरा के विद्वानों ने मूलग्रंथ के साथ-साथ उनके भाष्य और प्रशमरति को उमास्वाति की ही कृति मानकर उन दोनों में उपलब्ध श्वेताम्बर समर्थक तथ्यों के आधार पर उन्हें श्वेताम्बर सिद्ध करने का प्रयास किया, वहीं दिगम्बर परंपरा के विद्वानों ने भाष्य और प्रशमरति के कर्त्ता को तत्त्वार्थ के कर्त्ता से भिन्न बताकर तथा मूलग्रंथ में श्वेताम्बर परंपरा की आगमिक मान्यताओं से कुछ भिन्नता दिखाकर उन्हें दिगम्बर परंपरा का सिद्ध करने का प्रयास किया है, जबकि पं. नाथूराम प्रेमी जैसे कुछ तटस्थ विद्वानों ने ग्रंथ में उपलब्ध श्वेताम्बर और दिगम्बर - दोनों परंपराओं से विरुद्ध तथ्यों को उभारकर और यापनीय मान्यताओं से उनकी