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उपाय अधिक उपयुक्त लगा, किंतु समस्त देश कोऋणमुक्त करने के लिए जितनेधन की आवश्यकता थी, उतना उसके पास नहीं था, अतः उसने गुरु हेमचंद्र सेधन प्राप्ति का उपाय पूछा। इस समस्या के समाधान हेतु यह उपाय सोचा गया कि हेमचंद्र के गुरु देवचंद्रसूरि कोपाटन बुलवाया जाए और उन्हें जोस्वर्णसिद्धि विद्या प्राप्त है, उसके द्वारा अपार स्वर्णराशि प्राप्त करके समस्त प्रजा कोऋणमुक्त किया जाए। राजा, अपनेप्रिय शिष्य हेमचंद्र और पाटन के श्रावकों के आग्रह पर देवचंद्रसूरि पाटण आए, किंतु जब उन्हें अपनेपाटण बुलाए जानेके उद्देश्य का पता चला तो, न केवल वेपाटण से प्रस्थान कर गए, अपितु उन्होंने अपनेशिष्य को अध्यात्म साधना सेविमुख होलोकैषणा में पड़ने का उलाहना भी दिया और कहा कि लौकिक प्रतिष्ठा अर्जित करनेकी अपेक्षा पारलौकिक प्रतिष्ठा के लिए भी कुछ प्रयत्न करो। जैनधर्म की ऐसी प्रभावना भी जिसके कारण तुम्हारा अपना आध्यात्मिक विकास ही कुंठित होजाए तुम्हारे लिए किस काम की ? कहा जाता है कि गुरु के इस उलाहनेसेहेमचंद्र को अपनी मिथ्या महत्त्वाकांक्षा का बोध हुआ और वेअन्तर्मुख हो अध्यात्म साधना की ओर प्रेरित हुए। 16 येयह विचार करने लगेकि मैंने लोकैषणा में पड़कर न केवल अपनेआपकोसाधना सेविमुख किया, अपितु गुरु की साधना में भी विघ्न डाला। पश्चाताप की यह पीड़ा हेमचंद्र की आत्मा कोबराबर कचोटती रही, जोइस तथ्य की सूचक है कि हेमचंद्र मात्र साहित्यकार या राजगुरु ही नहीं थे, अपितु आध्यात्मिक साधक भी थे।
वस्तुतः हेमचंद्र का व्यक्तित्व इतना व्यापक और महान् है कि उसेसमग्रतः शब्दों की सीमा में बांध पाना सम्भव नहीं है। मात्र यही नहीं, उस युग में रहकर उन्होंनेजोकुछ सोचा और कहा था वह आज भी प्रासंगिक है। काश! हम उनके महान् व्यक्तित्व सेप्रेरणा लेकर हिंसा, वैमनस्य और संघर्ष की वर्तमान त्रासदी से भारत को बचा सकते।