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________________ 215 समाजशास्त्री हेमचंद्र • स्वयं मुनि होते हुए भी हेमचंद्र पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन की सुव्यवस्था के लिए सजग थे। वेएक ऐसे आचार्य थेजोजनसाधारण के सामाजिक जीवन के उत्थान कोभी धर्माचार्य का आवश्यक कर्त्तव्य मानते थे । उनकी दृष्टि में धार्मिक होनेकी आवश्यक शर्त यह भी थी कि व्यक्ति एक सभ्य समाज के सदस्य के रूप में जीना सीखे। एक अच्छा नागरिक होना धार्मिक जीवन में प्रवेश करनेकी आवश्यक भूमिका है। अपने ग्रंथ 'योगशास्त्र' में उन्होंनेस्पष्ट रूप सेयह उल्लेख किया है कि श्रावकधर्म का अनुसरण करनेके पूर्व व्यक्ति एक अच्छे नागरिक का जीवन जीना सीखे। उन्होंने ऐसे 35 गुणों का निर्देश किया है, जिनका पालन एक अच्छे नागरिक के लिए आवश्यक रूप सेवांछनीय है । वेलिखते हैं कि - '1. न्यायपूर्वक धन-सम्पत्ति कोअर्जित करनेवाला, 2. सामान्य शिष्टाचार का पालन करनेवाला, 3. समान कुल और शील वाली अन्य गोत्र की कन्या सेविवाह करनेवाला, 4. पापभीरु, 5. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करनेवाला, 6. निंदा का त्यागी, 7. ऐसेमकान में निवास करनेवाला जोन तोअधिक खुला होन अति गुप्त, 8. सदाचार व्यक्तियों के सत्संग में रहनेवाला, 9. माता-पिता की सेवा करनेवाला, 10. अशांत तथा उपद्रव युक्त सत्संग स्थान कोत्याग देनेवाला, 11. निंदनीय कार्य में प्रवृत्ति न करनेवाला, 12. आय के अनुसार व्यय करनेवाला, 13. सामाजिक प्रतिष्ठा एवं समृद्धि के अनुसार वस्त्र धारण करनेवाला, 14. बुद्धि के आठ गुणों सेयुक्त, 15. सदैव धर्मोपदेश का श्रवण करनेवाला, 16. अजीर्ण के समय भोजन का त्याग करनेवाला, 17. भोजन के अवसर पर स्वास्थ्यप्रद भोजन करनेवाला, 18. धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों का परस्पर विरोध-रहित भाव सेसेवन करनेवाला, 19. यथाशक्ति अतिथि, साधु एवं दीन दुःखियों की सेवा करनेवाला, 20. मिथ्या आग्रहों सेसदा दूर रहनेवाला, 21. गुणों का पक्षपाती, 22. निषिद्ध देशाचार और कालाचार का त्यागी, 23. अपनेबलाबल का सम्यक् ज्ञान करनेवाला और अपनेबलाबल का विचार कर कार्य करनेवाला, 24. व्रत, नियम में स्थिर, ज्ञानी एवं वृद्धजनों का पूजा, 25. अपने आश्रितों का पालन-पोषण करनेवाला, 26. दीर्घदर्शी, 27. विशेषज्ञ, 28. कृतज्ञ, 29. लोकप्रिय, 30. लज्जावान, 31. दयालु, 32. शांतस्वभावी, 33. परोपकार करने में तत्पर, 34. कामक्रोधादि अंतरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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