________________
214 लेना कि हेमचंद्र स्त्री जाति के मात्र आलोचकथे, गलत होगा। हेमचंद्र नेनारी जाति की प्रतिष्ठाऔर कल्याण के लिए जोमहत्त्वपूर्ण कार्य किया, उसके कारण वेयुगों तक याद किए जाएंगे। उन्होंनेकुमारपाल कोउपदेश देकर विधवा और निस्सन्तान स्त्रियों की सम्पत्ति कोराज्यसात किए जानेकी क्रूर-प्रथा कोसम्पूर्ण राज्य में सदैव के लिए बंद करवाया और इस माध्यम सेन केवल नारी-जाति कोसम्पत्ति का अधिकार दिलवाया,12 अपितु उनकी सामाजिक जीवन में प्रतिष्ठा भी की और अनेकानेक विधवाओं कोसंकटमय जीवन सेउबार दिया। अतः हम कह सकतेहैं कि हेमचंद्र नेनारी कोउसकी खोई हुई प्रतिष्ठा प्रदान की। प्रजारक्षक हेमचंद्र
हेमचंद्र की दृष्टि में राजा का सबसेमहत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य अपनी प्रजा के सुखदुःख का ध्यान रखना है। हेमचंद्र राजगुरु होकर जनसाधारण के निकट सम्पर्क में थे। एक समय वेअपनेकिसी अति निर्धन भक्त के यहां भिक्षार्थ गए और वहां से सूखी रोटी
और मोटा खुरदुरा कपड़ा भिक्षा में प्राप्त किया। वही मोटी रोटी खाकर और मोटा वस्त्र धारण कर वेराजदरबार में पहुंचे। कुमारपाल नेजब उन्हें अन्यमनस्क, मोटा कपड़ा पहनेदरबार में देखा, तोजिज्ञासा प्रकट की, कि मुझसेक्या कोई गलती होगई है? आचार्य हेमचंद्र नेकहा- 'हम तोमुनि हैं, हमारेलिए तोसूखी रोटी और मोटा कपड़ा ही उचित है, किंतु जिस राजा के राज्य में प्रजा कोइतना कष्टमय जीवन बिताना होता है, वह राजा अपनेप्रजा-धर्म का पालक तोनहीं कहा जा सकता। ऐसा राजा नरकेसरी होनेके स्थान पर नरकेश्वरी ही होता है। एक ओर अपार स्वर्ण-राशि और दूसरी ओर तन ढकनेका कपड़ा और खानेके लिए सूखी रोटी का अभाव, यह राजा के लिए उचित नहीं है।' कहा जाता है कि हेमचंद्र के इस उपदेश सेप्रभावित होराजा नेआदेश दिया कि नगर में जोभी अत्यंत गरीब लोग हैं, उनकोराज्य की ओर सेवस्त्र और खाद्य-सामग्री प्रदान की जाए।13
इस प्रकार हम देखतेहैं कि हेमचंद्र यद्यपि स्वयं एक मुनि का जीवन जीतेथे, किंतु लोकमंगल और लोककल्याण के लिए तथा निर्धन जनता के कष्ट दूर करनेके लिए वेसदा तत्पर रहतेथेऔर इसके लिए राजदरबार में भी अपनेप्रभाव का प्रयोग करतेथे।