SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 210 अवश्य है, परंतु उसमें भी मुख्य वादी के रूप में हेमचंद्र न होकर बृहद्गच्छीय वादिदेवसूरि ही थे। यह भी सत्य है कि हेमचंद्र से प्रभावित होकर कुमारपाल नेजैनधर्मानुयायी बनकर जैनधर्म की पर्याप्त प्रभावना की, किंतु कुमारपाल के धर्मपरिवर्तन या उनकोजैन बनानेमें हेमचंद्र का कितना हाथ था, यह विचारणीय है। वस्तुतः हेमचंद्र के द्वारा न केवल कुमारपाल की जीव- रक्षा हुई थी, अपितु उसेराज्य भी मिला था। यह तोआचार्य के प्रति उसकी अत्यधिक निष्ठा ही थी, जिसने उसे जैनधर्म की 'ओर आकर्षित किया। यह भी सत्य है कि हेमचंद्र नेउसके माध्यम से अहिंसा और नैतिक मूल्यों का प्रसार करवाया और जैनधर्म की प्रभावना भी करवाई, किंतु कभी भी उन्होंने राजा में धार्मिक कट्टरता का बीज नहीं बोया । कुमारपाल सम्पूर्ण जीवन में शैवों " प्रति भी उतना ही उदार रहा, जितना वह जैनों के प्रति था। यदि हेमचंद्र चाहतेतोउसेशैवधर्म सेपूर्णतः विमुख कर सकतेथे, पर उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया बल्कि उसेसदैव ही शैवधर्मानुयायियों के साथ उदार दृष्टिकोण रखनेका आदेश दिया। यदि हेमचंद्र में धार्मिक संकीर्णता होती तोवेकुमारपाल द्वारा सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करा कर उसकी प्रतिष्ठा में स्वयं भाग क्यों लेते ? अथवा स्वयं महादेवस्तोत्र की रचना कर राजा के साथ स्वयं भी महादेव की स्तुति कैसेकर सकतेथे ? उनके द्वारा रचित महादेवस्तोत्र इस बात का प्रमाण है कि वेधार्मिक उदारता के समर्थक थे। स्तोत्र में उन्होंनेशिव, महेश्वर, महादेव आदि शब्दों की सुंदर और सम्प्रदाय निरपेक्ष व्याख्या करते हुए अंत में यही कहा है कि संसार रूपी बीज के अंकुरों कोउत्पन्न करनेवालेराग और द्वेष जिसके समाप्त होगए हों उन्हें मैं नमस्कार करता हूं, चाहेवेब्रह्मा हों, विष्णु हों, महादेव हों अथवा जिन हों | 3 धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ मिथ्या विश्वासों का पोषण नहीं यद्यपि हेमचंद्र धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक हैं, फिर भी वेइस संदर्भ में सतर्क हैं कि धर्म के नाम पर मिथ्याधारणाओं और अंधविश्वासों का पोषण न हो। इस संदर्भ में वेस्पष्ट रूप सेकहते हैं कि जिस धर्म में देव या उपास्य रागद्वेष सेयुक्त हों, धर्मगुरु अब्रह्मचारी हों और धर्म में करुणा व दया के भावों का अभाव हो, ऐसा धर्म वस्तुतः अधर्म ही है। उपास्य के सम्बंध में हेमचंद्र कोनामों का कोई आग्रह नहीं, चाहेवहं ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव होया जिन, किंतु उपास्य होने के लिए वेएक शर्त अवश्य रख देते हैं, - द्वेषमुक्त होना चाहिए। वेस्वयं कहतेहैं कि
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy