________________
189
(दिगम्बर)परंपरा की दो धाराएँ रही हैं, एक उत्तरभारत की यापनीय धारा और दूसरी दक्षिण भारत की दिगम्बर धारा। वस्तुतः, विमलसूरि की रामकथा का अनुसरण इसी यापनीय परंपरा ने किया है और यही कारण है कि रविषेण के पद्मपुराण और स्वयंभूके पउमचरिउ में अनेक ऐसे संकेत उपलब्ध हैं, जो दिगम्बर परंपराओं की मूलभूत मान्यता के विपरीत हैं। रविषेण और स्वयंभू ने विमलसूरि की रामकथा का अनुसरण किया, उसका मुख्य कारण यह है कि ये दोनों ही यापनीय परंपरा से संबंधित हैं। स्वयंभू के सम्प्रदाय के संबंध में पुष्पदंत के महापुराण के टिप्पण में स्पष्ट निर्देश है कि वे यापनीय संघ के थे। इसकी विस्तृत चर्चाहम पूर्व में स्वयंभू के सम्प्रदाय के संबंध में कर चुके हैं। स्वयंभूका व्यक्तित्व
पउमचरिउ के रचनाकार स्वयंभू के व्यक्तित्व के संबंध में पं. नाथूराम प्रेमी, डॉ. भयाणी, डॉ. कोछड़, डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, डॉ. नगेन्द्र एवं श्री सत्यदेव चौधरीआदि अनेक विद्वानों ने चर्चा की है। डॉ. किरण सिपानी ने भी उस पर विस्तार से प्रकाश डाला है, मात्र यही नहीं, उन्होंने कुछ स्थलों पर इन विद्वानों के विवेचन से अपना मतवैभिन्य भी प्रकट किया है। उदाहरण के रूप में, वे पविरलदन्ते का अर्थ विरल दांत वाले न करके सघन दांत वाले करती हैं। पविरल में उन्होंने 'प' के स्थान पर 'अ' की योजना की है, यद्यपि प्राचीन नागरी लिपि प' और 'अ' के लिखने में थोड़ा सा ही अंतर है यथा प-(प), अ-(अ)। यह संभव है कि किसी लेहिए की भूल के कारण आगे 'अ' के स्थान पर प' का प्रचलन हो गया हो, किन्तु जब तक अन्य कृतियों से इस पाठभेदकी पुष्टि न हो जाती है, तब तक पके स्थान पर अ' की कल्पना कर लेना उचित नहीं है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि स्वयंभू आजीवन गृहस्थ ही रहे, मुनि नहीं बने, फिर भी उनका ज्ञान गाम्भीर्य, विद्वत्ता, धार्मिक सहिष्णुताऔर उदारताआदि ऐसे गुण हैं, जो उन्हें एक विशिष्ट पुरुष की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देते हैं।
जहाँ तक स्वयंभू के व्यक्तित्व का प्रश्न है, वे आत्मश्लाघा एवं चाटुकारिता से दूर रहने वाले कवि हैं। ये ही कारण हैं कि उन्होंने स्वतः अपनी विशेषताओं का कोई परिचय नहीं दिया, यहाँ तक की उन्होंने अपने आश्रयदाता राष्टकूट राजा ध्रुव और उनके सामन्त धनञ्जय की भी कोई स्तुति नहीं की। यद्यपि वे उनके प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन अवश्य करते हैं और अपने को उनका आश्रित बताते हैं। मात्र यही नहीं, उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों-अमृताम्बाऔर आदित्याम्बा के प्रतिभीअपनी कृतज्ञता ज्ञापित की है। उनमें विनम्रता अपने चरम बिन्दु पर परिलक्षित होती है। वे अपने आप को अज्ञानी और कुकवि तक भी कह देते हैं। उन्होंने इस तथ्य को भी स्पष्ट किया है कि यह