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________________ 168 44. 45. 46. 47. वेमा 48. 49. साहुपभिइचउरोविबहुयाअविमाभणह संघं। असंघसंघजेभणित रागेणअहव दोसेण। छेओवा मुहुत्तं पच्छित्तंजायए तेसिं॥ - वही, 1/119-121, 123 गब्भपवेसोविवरंभद्दवरोनरयवास पासोवि। मा जिणआणालोवकरेवसणं नामसंघेवे।।- वही, 2/132 वही, 2/103 वही, 2/104 वेसागिहेसुगमणंजहा निसिद्धंसुकुल बहुयाणं। तह हीणायार जइ जणसंगसड्डाणपड़िसिद्धं । परं दिह्रिविसोसप्पोवरं हलाहलं विसं। हीणायार अगीयत्थ वयणपसंगंखुणोभद्दो।। - वही, श्रावक-धर्माधिकार, 2,3 वही, 2/77-78 बालावंयति एवं वेसोतित्थकराण एसोवि। नामणिज्जोधिद्धि अहोसिरसूलं कस्सपुक्करिमों॥ - वही, 2/76 वरंवाही वरं मच्चूवरं दारिद्दसंगमो। वरंअरण्णेवासोय माकुलीलाणसंगमो।। हीणायारोविवरंमाकुसीलएणसंगमोभदं। जम्हाहीणोअप्पनासइसव्वंहुसील निहिं।। विस्तार के लिए देखें सम्बोधप्रकरण गुरुस्वरूपाधिकार। इसमें 375 गाथाओं में सुगुरु का स्वरूप वर्णित है। नोअप्पणपराया गुरुणोकइया विहुंति सड्डाणं। जिणवयणरयणनिहिणोसव्वेतेवनियागुरुणो।। - वही, गुरुस्वरूपाधिकार, 3 लोकतत्त्वनिर्णय, 32-33 योगदृष्टिसमुच्चय, 129 जिनरत्नकोश, हरिदामोदर वेलंकर, भंडारकर आरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीच्यूट, पूना 1944, पृ. 144 50. 53. 54. 55.
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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