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जाती है। इन शिवभूति के एक शिष्य पूर्वधर भद्रगुप्त थे, अतः नाम साम्य का सहारा लेकर इसे भद्रबाहु के साथ जोड़ दिया गया। पुनः, इसमें भद्रबाहु के नाम के साथ श्रुतकेवली का अभाव और उनके अवन्तिका में होने का उल्लेख भी अचेलता के पक्षधर शिवभूति के शिष्यभद्रगुप्त से ही संगति रखते हैं।
ज्ञातव्य है कि इन भद्रगुप्त से आर्यरक्षित ने न केवल पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कियाथा, अपितु उनका समाधिमरण/निर्यापना भी करवाई थी। यह निर्यापना भी अवन्ती के समीपवर्तीभाद्रपद देश में हुई थी।आर्यरक्षित भी स्वयं दशार्णपुर (वर्तमान मंदसौर) के निवासीथे। इस प्रकार यहाँ पूर्वधर आर्यभद्रगुप्त के कथानक को श्रुतकेवलीभद्रबाहु से जोड़ने का असफल प्रयास हुआहै। यहभी ज्ञातव्य है कि आर्यभद्रगुप्त और आर्यरक्षित के समय तक जिनकल्प का प्रचलन था, यद्यपि अचेलकता के समर्थक जिनकल्प के साथ-साथ पात्र, कम्बल आदि के ग्रहण के रूप में स्थविर कल्प भी प्रचलित था। आर्यरक्षित ने एक ओर वर्षाकाल में अतिरिक्त पात्र की अनुमति दीथी, वहीं दूसरी ओर अपने पिता को नग्नता ग्रहण करवाने हेतु कुशलतापूर्वक एक युक्ति भी रची थी। इसी काल की मथुरा की जिनमूर्तियों के पादपीठ पर जो मुनियों के अंकन हैं, वे भी इसे पुष्ट करते हैं, क्योंकि उनमें नग्न मुनि के अंकन के साथ कम्बल, मुखवस्त्रिका एवंझोली सहित पात्र प्रदर्शित हैं। (इन अंकनों के चित्रजैन धर्म कायापनीय सम्प्रदाय नामक ग्रंथ के अंत में प्रदर्शित हैं और ये मूर्तियाँ और पादपीठ लखनऊ संग्रहालय में उपलब्ध हैं)।
इसके पश्चात्, दिगंबर परंपरा में हरिषेण के बृहत्कथाकोश में श्रुतकेवली भद्रबाहु के कथानक के साथ अर्ध स्फालक एवं श्वेताम्बर परंपरा की उत्पत्ति के कथानक उपलब्ध होते हैं। अंतर यह है कि जहाँ देवसेन ने इस घटना को वीर निर्वाण सं. 606 में घटित बताया, वहाँ हरिषेण ने स्पष्टतः इसे श्रुतकेवली भद्रबाहु से जोड़कर ई.पू. तीसरी शती में बताया। मात्र यही नहीं, उन्होंने इसमें देवसेन द्वारा उल्लेखित शान्त्याचार्य के स्थान पर रामिल्ल, स्थूलवृद्ध (स्थूलाचार्य) और स्थूलिभद्र - ऐसे तीन अन्य आचार्यों के नाम दिये हैं। इनमें स्थूलिभद्र के नाम की पुष्टि तो श्वेताम्बर स्रोतों से होती है, किन्तु रामिल्ल और स्थूलवृद्ध कौन थे, उसकी पुष्टि अन्य किसी भी स्रोत से नहीं होती है। इसमें स्थूलिभद्र को भी एक स्थान पर छोड़कर अन्यत्र भद्राचार्य कहा गया है। एक विशेष बात इस कथानक में यह है कि इसमें अर्धस्फालकों में श्वेताम्बरों की उत्पत्ति बताई है। इसे कम्बल तीर्थ भी कहा गया है और कथानक के