________________
ससएलासाढ-मूलदेव, खण्डा यं जुण्णउज्जाणे । सामत्थणेकोभत्तं, अक्खात जोण सद्दहति ॥ चोरभया गावीओ, पोट्टलए बंधिऊण आणेमि । तिलअइरूढकुहाडे, वणगय मलणा य तेल्लोदा ॥ वणगयपाटण कुंडिय, छम्मास हत्थिलग्गणं पुच्छे । रायरयग मोवादे, जहि पेच्छइ तेइमेवत्था ॥
114
भाष्य की उपर्युक्त गाथाओं सेयह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भाष्यकार कोसम्पूर्ण कथानक जोकि चूर्णि और हरिभद्र के धूर्ताख्यान में है, पूरी तरह ज्ञात है, वेमृषावाद के उदाहरण के रूप में इसे प्रस्तुत करते हैं। अतः यह स्पष्ट है कि संदर्भ देनेवाला ग्रंथ उस आख्यान का आद्यस्रोत नहीं होसकता। भाष्यों में जिस प्रकार आगमिक अन्य आख्यान संदर्भ रूप में आए हैं, उसी प्रकार यह आख्यान भी आया है। अतः यह निश्चित है कि यह आख्यान भाष्य सेपूर्ववर्ती है। चूर्णि तोस्वयं भाष्य पर टीका है और उसमें उन्हीं भाष्य गाथाओं की व्याख्या के रूप में लगभग तीन पृष्ठों में यह आख्यान आया है, अतः यह भी निश्चित है कि चूर्णि भी इस आख्यान का मूलस्रोत नहीं है। पुनः चूर्णि के इस आख्यान के अंत में स्पष्ट लिखा है- 'सेसं धुत्तवखाणगाहाणुसारेण' (पृ. 105 ) । अतः निशीथभाष्य और चूर्णि इस आख्यान के आदि स्रोत नहीं मानेजा सकते। किंतु हमें निशीथभाष्य और निशीथचूर्णि सेपूर्व रचित किसी ऐसेग्रंथ की कोई जानकारी नहीं है, जिसमें यह आख्यान आया हो ।
जब तक अन्य किसी आदिस्रोत के सम्बंध में कोई जानकारी नहीं है, तब तक हरिभद्र के धूर्ताख्यान कोलेखक की स्वकल्पनाप्रसूत मौलिक रचना क्यों नहीं माना जाए। किंतु ऐसा माननेपर भाष्यकार और चूर्णिकार, इन दोनों सेही हरिभद्र कोपूर्ववर्ती मानना होगा और इस सम्बंध में विद्वानों की जो अभी तक अवधारणा बनी हुई है वह खण्डित होजाएगी। यद्यपि उपलब्ध सभी पट्टावलियों तथा उनके ग्रंथ लघुक्षेत्रसमास की वृत्ति में हरिभद्र का स्वर्गवास वीर - निर्वाण संवत् 1055 या विक्रम संवत् 585 तथा तदनुरूप ईस्वी सन् 529 में माना जाता है। किंतु पट्टावलियों में उन्हें विशेषावश्यकभाष्य के कर्त्ता जिनभद्र एवं जिनदास का पूर्ववर्ती भी माना गया है। अब हमारेसामनेदोही विकल्प हैं या तोपट्टावलियों के अनुसार हरिभद्र कोजिनभद्र और जिनदास के पूर्व मानकर उनकी कृतियों पर विशेषरूप सेजिनदास महत्तर पर हरिभद्र