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________________ छठवें स्तबक में क्षणिकवाद की समीक्षा है। वहां पांचवें स्तबक में विज्ञानवाद और छठवें स्तबक में शून्यवाद की समीक्षा की गई है। इसके अतिरिक्त दसवें स्तबक में सर्वज्ञता प्रतिषेधवाद तथा ग्यारहवें स्तबक शब्दार्थ प्रतिषेध में भी बौद्ध मन्तव्यों की समीक्षा की गई है। समीक्षा के साथ बुद्ध के प्रति समादरभाव व्यक्त करते हुए बुद्ध ने इन सिद्धांतों का प्रतिपादन तृष्णा के प्रहाण के लिए किया, ऐसा उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त अनेकान्तजयपताका के पांचवें आदि अधिकारों में बौद्ध के योगाचार दर्शन की समीक्षा उपलब्ध होती है। अनेकान्तवाद प्रवेश में भी अनेकान्तजयपताका के समान ही अनेकान्तवाद को सरल ढंग से स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रंथ में बौद्ध ग्रंथों के उल्लेख एवं समीक्षाएं उपलब्ध होती हैं। इसी क्रम में हरिभद्र के योगदृष्टिसमुच्चय में भी बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा उपलब्ध होती है। संक्षेप में हरिभद्र ने बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद को ही मुख्य रूप से अपनी समालोचना का विषय बनाया है। किंतु हरिभद्र के अनुसार क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद मूलतः बाह्यार्थों के प्रति रही हुई व्यक्ति की तृष्णा के उच्छेद के लिए हैं। बौद्ध दर्शन की तत्त्वमीमांसा की अन्य परम्पराओं से समानता और अंतर भारतीय चिंतन में बौद्ध दर्शन की तत्त्वमीमांसा एवं प्रमाणमीमांसा की क्या स्थिति है इसे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है1. सत् के स्वरूप के सम्बंध में जहां अद्वैत वेदांत उसे अपरिणामी या अविकारी मानता है वहां बौद्ध दर्शन उसे सतत् परिवर्तनशील मानता है, जैन दार्शनिक उसे उत्पादव्यय-ध्रौव्यात्मक सत्' कहकर दोनों में समन्वय करते हैं। यहां मीमांसक भी जैनों के दृष्टिकोण के समर्थक प्रतीत होते हैं, किंतु सांख्य अपनी प्रकृति और पुरुष की अवधारणा में पुरुष को कूटस्थ नित्य और प्रकृति को परिणामी मानते हैं। 2. बौद्ध दार्शनिक जहां सत् को क्षणिक कहता है, वहां वेदांत उसे शाश्वत कहता है। जैन दर्शन बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा तो करते हैं, किंतु वे उसमें पर्यायों की दृष्टि से अनित्यता को भी स्वीकार करते हैं। उनकी दृष्टि में द्रव्य नित्य है, किंतु उसकी पर्याये अनित्य हैं। 3. बौद्ध के शून्यवाद में तत्त्व को सत्, असत् और अनुभय- इन चारों विकल्पों से भिन्न शून्य कहा गया है, जबकि जैनों ने उसे सत्, असत्, उभय और अनुभय चारों विकल्पों से युक्त माना हैं सत्ता की अनिर्वचनीयता को लेकर प्रायः शून्यवाद और अद्वैतवाद (17)
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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