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________________ तीसरी-चौथी शताब्दी से लेकर ग्याहरवीं शताब्दी तक भारत में बौद्ध दर्शन एवं न्याय के अनेक ग्रंथों की रचना हुई, इनमें जहां बौद्ध दार्शनिकों ने भी बौद्धेतर दार्शनिकों के मन्तव्यों की समीक्षा की, वहीं बौद्धेतर दार्शनिकों ने इन बौद्ध आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों को आधार बनाकर बौद्ध मन्तव्यों की समीक्षा की है। इस प्रकार लगभग ईसा की बारहवीं शताब्दी तक भारतीय दार्शनिक एक-दूसरे की परम्परा का सम्यक् रूप से अध्ययन करते रहे और उन्हें अपनी समीक्षा का विषय बनाते रहे। इस काल के बौद्ध एवं बौद्धेतर दर्शन ग्रंथों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उस काल तक अपने से भिन्न परम्परा के ग्रंथों के अध्ययन एवं समीक्षा की एक जीवन्त परम्परा थी, जो परवर्तीकाल में लुप्त हो गई। जैन विचारकों की दृष्टि में बौद्ध धर्म-दर्शन जैसा कि हमने पूर्व में निर्देश किया है कि जैन ग्रंथों में बौद्ध धर्म एवं दर्शन सम्बंधी उल्लेख आगम युग से ही मिलने लगते हैं। सर्वप्रथम इसिभासियाइं ( ऋषिभाषित) में सारिपुत्त, महाकश्यप और वज्जीपुत्त के उपदेशों का संकलन किया गया है, इसमें बौद्ध सन्ततिवाद, स्कन्धवाद आदि का स्पष्ट उल्लेख है। इसके अतिरिक्त सूत्रकृतांगसूत्र में बौद्धों के पंचस्कन्धवाद की समीक्षा भी है। इसके पश्चात् सर्वप्रथम द्वात्रिंशिका में न्याय दर्शन, तेरहवीं में सांख्य दर्शन, चौदहवीं में वैशेषिक दर्शन और पंद्रहवीं द्वात्रिंशिका में बौद्ध दर्शन के क्षणिकवाद आदि पर चुटीले व्यंग्य किए गए हैं, किंतु वहीं सद्धिसेन ने सन्मतितर्कप्रकरण में बौद्ध क्षणिकवाद को ऋजुसूत्रनय के आधार पर समीचीन भी माना है। इसके पश्चात् मल्लवादी के द्वादशारनयचक्र और उसकी सिंहसूरि की टीका में भी बौद्ध मन्तव्यों की विस्तृत समीक्षा उपलब्ध होती है। मल्लवादी के द्वादशारनयचक्र में बौद्ध मन्तव्यों की समीक्षा कहां और किस रूप में मिलती है, इसका मूल संदर्भों सहित निर्देश डॉ. धर्मचंद जैन ने अपने ग्रंथ 'बौद्धप्रमाणमीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा' के परिशिष्ट तृतीय, अध्याय-ख, पृ. 394-396 पर किया है। इसमें दिनांग की उपस्थापनाओं को आधार बनाकर ही बौद्ध दर्शन की समीक्षा की गई है। लगभग ईसा की छठी शती में 'विशेषावश्यकभाष्य' के गणधरवाद में बौद्धों के क्षणिकवाद, शून्यवाद आदि की विस्तृत समीक्षा उपलब्ध होती है। यद्यपि सिद्धसेन और समन्तभद्र ने अनेकांतवाद की स्थापना के अपने प्रयत्न में बौद्धों के सत् के परिवर्तनशीलता के सिद्धांत और इसके विरोधी कूटस्थ नित्यता के सिद्धांत के मध्य समन्वय का प्रयत्न कर बौद्ध मन्तव्य की सापेक्षिक सत्यता का प्रतिपादन अवश्य किया, 8
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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